- 240 Posts
- 617 Comments
दोष-दृष्टि को सुधारना ही चाहिए (भाग 2)
दोष-दर्शन से दूषित व्यक्ति जब किसी व्यक्ति के संपर्क में आता है, तब अपने मनोभाव के अनुसार उसके अन्दर बुराइयाँ ढूँढ़ने लगता है और हठात् कोई न कोई बुराई निकाल ही लेता है। फिर चाहे वह व्यक्ति कितना ही अच्छा क्यों न हो। उदाहरण के लिये किसी विद्वान महात्मा को ही ले लीजिये। लोग उसे बुलाते, आदर सत्कार करते और उसके व्याख्यान से लाभ उठाते हैं। महात्मा जी का व्याख्यान सुन कर सारे लोग पुलकित, प्रसन्न व लाभान्वित होते हैं।
उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते और अपने उतने समय को बड़ा सार्थक मानते। अनेक दिनों, सप्ताहों तथा मासों तक उस सुखद घटना का स्मरण करते और ऐसे संयोग की पुनरावृत्ति चाहने लगते। अधिकाँश लोग उस व्याख्यान का लाभ उठा कर अपना ज्ञान बढ़ाते, कोई गुण ग्रहण करते और किसी दुर्गुण से मुक्ति पाते हैं। वह उनके लिए एक ऐसा सुखद संयोग होता है जो गहराई तक अपनी छाप छोड़ जाता है, ऐसे ही सुव्यक्ति गुणाग्राही कहे जाते हैं।
अब दोष-दृष्टा को ले लीजिये। उसकी स्थिति बिल्कुल विपरीत होती है। जहाँ अन्य लोग उक्त महात्मा में गुण ही देख सके वहाँ उसे केवल दोष ही दिखाई दिये। उसका हृदय महात्मा के प्रशंसकों के बीच, उनकी कुछ खामियों के रखने के लिये बेचैन हो जाता। जब अवकाश अथवा अवसर न मिलता तो प्रशंसा में सम्मिलित होकर उनके बीच बोलने का अवसर निकाल कर कहना प्रारम्भ कर देता- ‘‘हाँ, महात्मा जी का व्याख्यान था तो अच्छा- लेकिन उतना प्रभावोत्पादक नहीं था, जितना कि लोग प्रभावित हुए अथवा प्रशंसा कर रहे हैं। कोई मौलिकता तो थी नहीं। यही सब बातें अमुक नेता ने अपनी प्रचार-स्पीच में शामिल करके देशकाल के अनुसार उसमें धार्मिकता का पुट दे दिया था। अजी साहब क्या नेता, क्या महन्त सबके-सब अपने रास्ते जनता पर नेतृत्व करने के सिवाय और कोई उद्देश्य नहीं रखते। यह सब पूजा, प्रतिष्ठा व पेट का धन्धा है।”
यदि लोग सच्चाई से विमुख होकर उससे सहमत न हुए तब तो वह वाद-विवाद के लिये मैदान पकड़ लेता है और अन्त में अपना दोषदर्शी चित्र दिखा कर लोगों की हीन दृष्टि का आखेट बन कर प्रसन्नता खो कर और विषण्ण होकर लौट आता है। जहाँ गुण ग्राहकों ने उस दिन महीनों काम आने वाली प्रसन्नता प्राप्त की, वहाँ दोष-दृष्टा ने जो कुछ टूटी-फूटी प्रसन्नता उस समय पास में थी वह भी गवाँ दी।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति मई 1968 पृष्ठ 22-23
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1968/May.22
Gurukulam Team (Shantikunj, Haridwar)
gurukulam.awgp.in
Read Comments