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बाबा तुलसी की एक चौपाई से प्रारम्भ करते हैं-
विधुबदनी सब भांति सवांरी | सोह न बसन बिना वर नारी ||
अर्थ -चंद्रमुखी नारी विधाता की सर्वोत्तम कृति है,पर विना वस्त्र के शोभित नहीं होती |
आज जब एक ओर नारी अत्याचार का बोलवाला है और दूसरी ओर नारी के कदम से कदम मिलाकर चलने का समय तो अवश्य ही एक कोड आवश्यक है,और वह कैसा होना चाहिए यह आप के कार्य और कार्यालय पर निर्भर करता है|
मात्र सभ्य पुरुष ही नहीं,वरन कुछ युवा,प्रौढ़,वरिष्ठ और सभी बुजुर्ग महिलाएं भी आज की पीढ़ी के नारी वस्त्र देखकर विरोध जताती रही हैं,भले ही आज की मॉडल लड़की यह कहने में तनिक संकोच न करें,”लड़की ड्रेस क्यों,पुरुष अपनी मानसिकता बदलें” | पर मानसिकता को बदलना वस्त्र जितना आसान नहीं होता | और आज के इस समाज में परमहंस और बाल ब्रह्मचारी नहीं पाये जाते,जो कामुक दृश्यों को भी देखकर “ब्रह्म” में ध्यानमग्न बने रहें |
अवश्य ही मैं नारी के लिए किसी भी प्रकार का वस्त्र पहनने का समर्थक हूँ,पर कहीं ऐसा न होने लगे -कल को देश के कुछ सिरफिरे युवक -युवती नग्न होकर दौड़ने लगे,और कहें यदि किसी को नहीं देखना तो आँखे बंद कर लो |
नारी वर्ग अवश्य ही ऐसा कह सकता है -यह छोटी -छोटी बच्चियों पर अत्याचार हो रहा उसका दोषी कौन |
निश्चित रूप से हम सब दोषी हैं,सरकार और कानून से भी अधिक हमारी सभ्यता को उत्कृष्ट रखना समाज के प्रत्येक इंसान की जिम्मेदारी है ,और समाज के लोग ऐसे पापियों का अंत करें,तभी सही राह पर चलने की जिज्ञासा उत्पन्न होगी |
हमारे बाबा जी ने अपने ननिहाल की एक सत्य घटना सुनायी मुझे – १०- १२ की बोर्ड परीक्षा में एग्जाम सेंटर बनाये जाते हैं,उनकी ननिहाल में एक ठाकुर के यहां,किसी दुसरे गांव का एक बुजुर्ग हरिजन अपनी और परिवार की कुछ अन्य लड़कियों के साथ एग्जाम देने तक रहने के लिए शरण मांगने आया,ठाकुर साहब ने शरण दे दी,पर उनका एक जवान नाती था,जिसने लड़कियों से अभद्रता करना प्रारम्भ कर दिया | ठाकुर का बेटा बाहर पुलिस में दरोगा के पद पर कार्यरत था,उसी समय कुछ दिनों के बाद वह भी छुट्टी आया | उसने हरिजन से हाल चाल पूछा – हरिजन विनयानवत होकर बोला,साहब सब ठीक तो है ,पर आप के बेटे,कभी -कभार थोड़ा लड़कियों को परेशान करते | दरोगा के पास रिवाल्वर थी ,और उसने गोली मार दी,अपने बेटे को | उसने हरिजन से कहा -आप आराम से रहो ,पर दूसरे किसी से मेरी गंदी संतान की गलती कहना मत |
यह उनकी बचपन की घटना थी,तब ऐसा भी समाज था| आज तो बाप -बेटे दोनों मिलकर या अलग -अलग अनेक लड़कियों को पटाने के कार्य में सलग्न हैं,अतः नारी को भी समाज के हिसाब से आत्मरक्षा के अनुसार जीवन जीना आवश्यक है |
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