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“नारी”

SUBODHA
SUBODHA
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नारी, नर को समाये हुए है.
दो दीर्घ मात्रा लगाये हुए है.
तू आदिशक्ति ,तू जगदम्बा,
तू जीव जगत की है अम्बा.
दया का अथाह सागर तुझमे है,
रण चण्डी का रूप तुझमे है.
गजबदन,षडानन जननी तू .
रक्तबीज की हरणी तू.
लव -कुश का पालन तू करती,
महिषासुर को तू हरती.
चण्ड-मुंड का वध करके, चामुण्डा तू बन जाती है,
गोरों को खा कर के तू , लक्ष्मीबाई कहलाती है.
तू सती साध्वी अनुसुइया,
तू हर पल पुनीत गंगा मैया.
तेरी अटल साधना से ,त्रिदेव भी बच्चे बन जाते,
तेरी करुणा से मैया ,देवव्रत भी भीष्म कहलाते.
तेरी करुणा की बूँद मात्र,भोगी को योगी कर देती,
तेरी कृपा कटाक्ष जननि,पापी के पाप हर लेती.
जग जननि जगदम्बे जाग,बाल पुकार से.
हर दे सब अत्याचार,एक प्रबल हुंकार से………………………………………………………

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