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“पहली वारिश और हाल बेहाल”

SUBODHA
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अभी तक हर न्यूज़ चैनल से सूखे -सूखे की ध्वनि गूँज रही थी.अब पहली वारिश से ही परेशानी होने लगी. सड़क,सोसाइटी,रेलवे लाइन सब पे पानी भर गया.मात्र कुछ घंटे की वारिश से.इतनी वारिश कहीं खुले मैदान में हुयी होगी,तो कुछ देर के बाद जल भी नहीं दीखता होगा.धरती की ऊपरी परत ही सब सोख गयी होगी.
पर शहर में यह सब बहुत जल्दी होता.कारण मात्र एक-“ड्रेनेज सिस्टम”.सब नाले पॉलिथीन से लबालब भरे हुए,पानी नालों से होकर नहीं,सड़क के ऊपर से होकर बहता है.परिणामतः ,पूरा शहर जाम.एक घंटे की दूरी चार से छह घंटे में तय होती.
बेचारे इंद्रदेव भी परेशान,कब ,कहाँ,कैसे ,कितना पानी बरषाऊँ.जो प्रत्येक जीव को लाभ मिले.आखिरकार किसी का कुछ नुक़सान हो गया,तो सारी जनता,मेरे ऊपर ही चढ़ बैठेगी.
कोई बड़ा तपस्वी किस्म का आदमी होगा ,तो शाप भी दे सकता है.आजकल वैसे भी हमारा भोग कम ही लगता है.
अभी तो यह मात्र एक झलक थी.जब पुख्य,पुनर्वस बरसेंगे ;मघा की झड़ी लगेगी तब न जाने मेरा क्या हश्र होगा.पर बरसना तो पड़ेगा ही,नहीं तो किसान,बेचारा आत्म…………………
पर संसारी जीव की प्रत्येक समस्या मेरे कारण नहीं है,वह अपने बनाये हुए जाल में खुद ही फंश गया है.
“वर्षो कारे बदरा”.

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