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“पिया मिलन की रितु आयी”(जागरण जंक्शन फोरम)

SUBODHA
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काल को खंड में विभाजित करने वालों ने युग,शताब्दी ,दसक,वर्ष ,माह ,दिन ,प्रहर(पहर),घड़ी ,घंटा,मिनट ,सेकंड,पल आदि का निरूपण किया | अंग्रेज़ी पद्धति के अनुसार एक ही दिनांक( १ जनवरी ) से वर्ष का प्रारम्भ और दूसरी दिनांक(३१ दिसंबर ) पर समापन | परन्तु प्रत्येक देश का एक अपना अलग से भी काल गणना का सिद्धांत है और भारतवर्ष में तो लगभग प्रत्येक राज्य का ही एक अलग पंचांग है,इसके अलग -अलग राज्यों में भिन्न तिथियों पर अपनी नववर्ष मनाई जाती है | वाराणसी और बंगलौर के दो ज्योतिषियों का एक ही तिथि को लेकर भिन्न मत और विचार हो सकता है,शायद सृष्टि भी अपने आप में कुछ ऐसा ही समेटकर और सहेजकर रखे हुए है |
सामान्यतः एक वर्ष में ६ ऋतुएँ,प्रत्येक ऋतु को २ माह समर्पित और हर एक ऋतु का अपना सिद्धांत और परिणाम | हिन्दी काव्य में अनेक कवियों ने वारहमासी का बहुत अच्छा वर्णन किया है | बाबा तुलसी को याद करूँ,तो -“ग्रीषम दुसह राम वन गवनू |; वर्षा ऋतु रघुपति भगति | ;वर्षा घोर निशाचर रारी | ;हिम हिमशैलसुता सिव व्याहू* सिसिर सुखद प्रभु जन्म उछाहू || आदि -आदि |
पर श्रावण और भाद्रपद (लगभग जुलाई -अगस्त) यह दो माह ऐसे होते हैं,जब ग्रीष्म की भयंकर तपन को झेलने के बाद,पहली वारिश होने के कुछ दिनों के बाद धरती हरियाली चादर ओढ़कर नया श्रृंगार करती है | प्रकृति ,सस्य श्यामला होकर नवयुवती का रूप धारण करती है;शांत और स्निग्ध होकर परमपुरुष के प्रति आत्मनिवेदन कर देती है-शायद यही सच्चा पिया मिलन है |
वर्षा के चार माह,सन्यासी भी एक जगह स्थिर होकर आत्मा को परमात्मा से मिलाने का एक प्रयास करते हैं,उनका भी तीर्थाटन विराम लेकर,राम -राम की रट लगाता है |
“अात्मा का परमात्मा से मिलन, साक्षातकार ही किसी जीव के जीवन का सबसे बड़ा त्यौहार है” ||

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