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“पैसा किसका है?”

SUBODHA
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किसी का नहीं भाई.कौड़ी-कौड़ी माया जोरी,साथ नहीं कुछ जाना है.संस्कृत का एक श्लोक-
ईशावास्यमिदम् यत्किंचित सर्वताम् जगत्यां जगत,
तेन त्यक्तेन भुंजीथा,मा गृधः कस्विद्धनम्.
भावार्थ – संसार में जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है,सब में ईश्वरीय सत्ता है,अतः त्यागी होकर भोग करो.लोभ मत करो .धन किसका है?-किसी का नहीं.
और एक साधारण उदाहरण से समझते हैं – एक इंसान ने अपना पैसा कमाकर,किसी तीसरे इंसान के पास या बैंक में जमा कर दिया.दूसरे इंसान ने वही पैसा निकाल कर(लोन से ),पहले इंसान से ज्यादा तरक्क़ी कर ली. अब कहने को तो,पैसा किसी और का था,पर तरक्क़ी किसी और की हुयी.
हमारे नाना जी ने एक बार किसी से कहा -लोग अपने बाल -बच्चों के लिए बैंक में पैसे जमा करते.हमारे सब सरकारी खजाने से निकालकर खर्च करते(उनके चारों बेटे ,दोनों दामाद सरकारी संस्थाओं में कार्यरत). मैं क्यों बैंक में जमा करूँ.
पर यदि उनके सामने कोई कुछ मांगने आया,चाहे पैसा या अनाज,तो खाली हाथ कभी नहीं लौटा.और वह भी अपने बल-बूते,खेती से कमा के.और न ही कोई सूत -व्याज पर.
शायद इसे ही कॉमर्स की भाषा में -“उदारवाद” कहते हैं.
जो अच्छा और राष्ट्रप्रेमी बिजनेसमैन है,वह भी इसी सिद्धांत से जी रहा है.नहीं तो टाटा,बिरला भारतीय जनमानस की चेतना में कोई स्थान नहीं पाते.मैंने जहाँ तक देखा और समझा है,इस देश का अधिकतर इंसान सीधा और सादगी से जीवन जीने में विश्वास करता है.पैसा उसके जीवन का मूल भूत लक्ष्य कदापि नहीं रहा.
यदि हम लोमड़ी जैसे होशियार और चालाक होते,तो विदेशियों द्वारा शाषित कदापि नहीं होते.हम शेर और गाय जैसे बने रहे,हर एक से बेख़ौफ़ और सादा जीवन.
पर अब समय की मांग है,हम पैसे का सही से उपयोग करना सीखें.इस देश के महान गुरु -चाणक्य का अर्थशाश्त्र और राजनीती,विश्व प्रसिद्द हो गया.और तो और जब लालू जी रेल मंत्री थे,तो रेल के मुनाफे को देखकर,उन्हें हार्वर्ड जैसे विदेशी कॉलेज भी लेक्चर के लिए आमंत्रित करने लगे थे. जितना चारे का घपला किया,उतना रेल से भर दिया.पर चरित्र के ऊपर काले दाग,सर्फ एक्सेल से साफ़ नहीं हो सकते.
इंग्लिश में एक कहावत भी है –

” IF YOU HAVE A COIN.DO NOT WORSHIP IT,INVEST IT”.

“EDUCATION IS THE BEST INVESTMENT”.
अतः समाज के सब लोगों को एक साथ लेकर आगे बढ़ने में ही,उत्थान संभव है.
“संघेशक्ति कलौयुगे”.

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