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बलात्कार का शाब्दिक अर्थ -बल पूर्वक किया गया कार्य और जब इसे सेक्स के साथ जोड़ दिया जाये,तो घिनौना अपराध ,मानसिक विकृति आदि की संज्ञा पाता है | यदि पति -पत्नी में से कोई एक ,विना दूसरे की इच्छा के संसर्ग कर रहा है ,तो कहीं न कहीं ,बलात्कार का ही दूसरा रूप है |
मैंने लगभग ५ वर्ष पूर्व स्वामी विवेकानंद की एक पुस्तक में उनका विचार पढ़ा,” यदि कोई भी इंसान अपने अंदर की सम्पूर्ण सेक्स एनर्जी को स्प्रिचुअल (आध्यात्मिक ) एनर्जी में बदल दे ,तो वो भगवान बन सकता है”|
जो सामाजिक विषयों पर शोध विदेशों में आजकल चल रहे हैं या आगे भी होंगे,उसके बारे में गहनता और सूक्ष्मता से निरूपण हमारे ऋषि -मुनि धार्मिक ग्रंथों में आलरेडी कर चुके हैं,इस देश जैसा उत्कृष्ट समाज किसी अन्य देश का नहीं होगा,ऐसा मैं निश्चित तौर से मानता हूँ |
अब ,कोई भी इंसान ,जन्मजात तो बलात्कारी(अति कामुक) हो नहीं जाता,विदेशियों के शोध तो ऐसा भी कहते हैं,बच्चे को सेक्स का ज्ञान,माँ के प्रथम बार ,स्तन पीने से ही हो जाता है | पर मैं ऐसा नहीं मानता | यदि ऐसा होता,तो एक अबोध बच्चा दूध पीने की इच्छा कभी न करता,वह भूख से आकुल -व्याकुल होकर,अपनी क्षुधा -पिपासा की शांति हेतु कुछ पीने का कठिन प्रयत्न करता है |
अब रही बात काम(सेक्स) और कामुकता की,तो यह ज्ञान लगभग १२ वर्ष के बाद ही बच्चे के अंदर आता है,गांव के बच्चे तो पशुओं को देखकर या परिवार में दूसरे बच्चों के जन्म का समाचार सुनकर समझ ही जाते हैं,सेक्स क्या बला है | भले ही वह सेक्स रोगों से बचाव के उपाय न जान पाएं |
हमारे गांव के एक इंसान ,रिश्ते में मेरे ताऊ जी,बताते जब उन्होंने अपनी ८ या ९ की क्लास में सावित्री-सत्यवान वाली कहानी में,गर्भवती शब्द पढ़ा,तब अपने टीचर से पूछा,सर यह गर्भवती क्या होता है ? अर्थात उस उम्र तक उन्हें सेक्स का बोध नहीं था |
आजकल सेक्स का ज्ञान प्रकर्ति के माध्यम से होने के बजाय, टीवी से हो रहा है,यहाँ पर मैं यह भी पहले स्पष्ट करना चाहता हूँ,बिजली के उपकरण,टीवी ,मोबाइल आदि सब एक अलग तरंगे उत्पन्न करते हैं ,जो मानव मष्तिष्क और जीव के जीवन के लिए हानिकारक हैं |
जब पुराने काल खंड में,विश्वामित्र जैसा तपस्वी,बिना कुछ सोचे -समझे एक अप्सरा के साथ लिव इन रिलेशनशिप में वर्षों रह सकता है और बाद में हीन भावना में आकर उसको,उसके गर्भसहित त्याग कर सकता है,तो यह आज का जीव ,मानव क्या यह सब नहीं कर सकता | जब देवर्षि नारद,पवित्र हिमगिरि गुहा में कामजयी( अर्थात पहले काम से हारे हुए थे,जिससे इंसान हारा हुआ हो ,उसी को जीतने का कार्य करता है और जो उसे असंभव लगता है ,उसे ही पाकर अभिमान आता है) होने के बाद में विश्वमोहिनी को पाने के लिए छटपटाने लगे,तो यह कलियुगी जीव भी कामातुर है,तो क्या आश्चर्य |
शहर में कुछ इंच का अधोवस्त्र और स्तन आ आवरण मात्र उत्तरीय धारण कर के एक किशोरी कामिनी हमउम्र किशोर का हाथ थामे जब सडको पर हवा खाने निकलती है,तब अनपढ़ परन्तु मेहनती युवा मज़दूर, अशिक्षित,दुराचारी,निठ्ठले युवक ,उस पर ऐसे दृष्टिपात करेंगे,मानो कोलकाता का रसोगुल्ला,उरई का गुलाब -जामुन,आगरे का पेठा,मथुरा का पेड़ा सब एक साथ उसके सामने परोस दिए गए हों और वह गंभीर चिंतन कर रहा,क्या पहले खाए और सब कुछ कितनी शीघ्रता से खा ले |
हमारे बाबा जी ने एक बार मुझे बताया ,एक ही युवा स्त्री को चार व्यक्ति अलग -अलग निगाह से देखते हैं,बच्चा -माँ के रूप में ,युवा -कामिनी के रूप में,वृद्ध -पुत्री के रूप में और सन्यासी-काष्ठ (लकड़ी ) के रूप में |
आज के इस परिवेश में बलात्कार जैसे अपराधों से निपटने के लिए,नैतिक शिक्षा,योग ,भक्ति ,वैराग्य और नारी का सशक्तिकरण(जूडो,कराटे) आदि ही कारगर उपाय हों सकते हैं |
“जय हिन्द,जय भारत”.
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