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आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर अपने हृदय और मनोमस्तिष्क के सबसे निकटतम व्यक्तित्व,मेरा बचपन का प्रथम और जीवन का अंतिम यार-बाबा को याद करते हुए,उन्ही का एक दृष्टांत लिख रहा हूँ |
वाद -विवाद हर घर ,घर -घर की बात है |संपत्ति को लेकर झगडे अम्बानी brothers में भी हो जाते हैं | पर उससे कैसे निपटा जाये,यह हर इंसान का व्यक्तिगत निर्णय और उसकी अपनी सूझ -बूझ पर निर्भर करता है | जब मेरे बचपन का दौर था,तभी घर में बटवारे का भी कार्यक्रम पूर्ण पराकाष्ठा पर था | जो भी बात होती,वह मेरे मन पर अमिट हो गयी ,मैं चाहकर भी भुला नहीं पाता |
उस दौर में बाबा जी ने एक सत्य घटना सुनायी थी ,जो उन्होंने फैज़ाबाद में अपनी किशोरावस्था में देखी थी |
एक सेठ जी थे,उनके एक छोटा भाई और २ बेटे | उनके पिता जी का बचपन में स्वर्गवास हो गया | उन्होंने बड़ी कठिनता से जीवन जिया | अपने छोटे भाई को भी बच्चों की तरह ही पाला | अपने व्यवसाय को भी आगे बढ़ाया और एक सोने की ईंट खरीदी | व्यवसाय आगे बढ़ा | परिवार भी फला-फूला | छोटे भाई ने अलग होने का विचार किया | उसने कहा,सोने की ईंट मुझे चाहिए | सेठ के लड़कों ने ,अपने चाचा को ईंट देने से मना किया | बात ज्यादा बढ़ी ,झगडे की नौबत आ गयी | सेठ अपने दोनों बेटो को अंदर कमरे में ले गया और उनसे कहा,” देखो मुझे तो बुढ़ापा है ही,अब आगे सब कुछ तुम्ही लोगों को ही करना है,अपने भाई को भी मैंने तुम्हीं लोगों जितना ही प्यार दिया,पाला -पोसा | कोई बात नहीं, सोने की ईंट उन्हें ही दे दो | तुम लोग सही से आगे बढ़ोगे,तो एक नहीं किसी दिन दो सोने की ईंट होगीं,तुम्हारे पास | नहीं तो चाचा अस्पताल में , तुम लोग जेल में और मेरा बुढ़ापा रोने में गुजर जाएगा | मेरे पूरे जीवन भर के किये धरे पर पानी फिर जाएगा” |
बच्चों को बात समझ में आ गयी और सहर्ष बटवारा हो गया |
इसलिए,”झगड़ा कबहूँ न कीजिये ,झगड़ा से घर जात”,लड़ाई -झगड़ा सभी से ही खराब होता है,पर भाई से तो सबसे अधिक ,क्यों की वह, तुम्हारी हर एक ताकत और कमजोरी को भली -भांति जानता है |
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