Menu
blogid : 18093 postid : 825940

“बृद्धमाता”

SUBODHA
SUBODHA
  • 240 Posts
  • 617 Comments

ईसा के नव वर्ष की सभी को शुमकामनाएं | सभी सत्य का अनुभव करने के लिए निरंतर आगे बढ़ते रहें | वैसे तो काल को हमने चक्र के रूप में निरूपित किया,यह गोलाकार है और अनवरत चल रहा है ,शायद मानव ने सूर्य ,चन्द्र ,तारे आदि की गोल आकृति को देखकर ,समय को भी गोल आकार दिया | इस जगत में जन्म लेने वाला प्रत्येक जीव कालचक्र के अधीन ही है और जब कोई जीव काल चक्र से ऊपर उठ गया ,तो समझो उसका जगत विलीन हो गया ,दुनिया का समापन हो गया ,उसकी नज़रों में |
पृथिवी के अन्य -अन्य हिस्सों पर एक ही समय में अलग -अलग तरह का मौसम हो सकता है ,जैसे उत्तर भारत में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही ,मुंबई में रात्रि में फैन चलाकर सोना पड़ता है ,भले ही ब्रह्ममुहूर्त के समय उसे बंद करने की आवश्यकता समझी जाई |
अतः कब किसकी नव वर्ष है,यह तो वही जाने | पर प्रत्येक जीव के जीवन में काल चक्र बहुत बार नया छण ,नया पल ,नया उत्साह लेकर अवश्य आता होगा ,ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है और वही छण उसके लिए नए परिवर्तन का समय होगा |
वैसे तो शरीर को मिलने वाली प्रत्येक सांस ईश्वर प्रद्दत एक नयी प्राणऊर्जा ही है ,हर आगामी पल नया है ,और हम सब उस नए पल का सदुपयोग करते हुए ,काल चक्र और महाकाल के प्रति समर्पित रहें |
“मंगल भवन ,अमंगल हारी”बाल मुकुंद हम सब का मंगल करे ,इसी के साथ यह एक कविता भी ,जो विगत वर्ष के अंतिम दिनों में बनी ,एक ऐसी बृद्धमाता और उनके हावभाव को देखकर बरवस इतने शब्द मेरे मनो मष्तिष्क में बन गए –

माते,तेरी शताष्टक नामावली में एक नाम “बृद्धमाता” भी है,
भारतवर्ष में जो ,”आजी ,दादी ,बूढ़ीदादी”आदि शब्दों से विख्यात हुआ |
इस जग में भ्रमण करते हुए,जब मैंने आप के ऐसे स्वरुप को देखा ,
जो अपने जीवन के सातवें दसक में भी,अपनी साड़ी के पल्लू से ,
अपना सिर ढकने का जटिल प्रयास कर रही है ,
तो मुझे ऐसी अनुभूति हुयी,जैसे मर्यादा का प्रारम्भ भी तुम और तुम ही समापन हो |
जैसे तुम अपनी भावी संतानों को अपने आचरण से मर्यादा का दिव्य पाठ पढ़ा रही हो |
तुम्हारे उन बुजुर्ग नेत्रों से मानो,सतत प्रेम धारा प्रवाहित हो रही हो ;
तुम जगत की भटकती संतानो पर अपनी कृपा दृष्टि डाल रही हो |
ऊपर उठते हुए तुम्हारे वरद हस्त ,मानो भूले -भटकों को आशीर्वाद देने को आतुर हो रहे हों|

तुम्हारा हर एक अगला पग मानो ,एक तीर्थयात्रा करने को ही अग्रसर है ;
अथवा तुम अपने चरण चिन्हों से ,इस समूची पृथिवी को ही तीर्थ बना रही हो |
तुम्हारी लडखडाती वाणी से मानो बेद,प्रस्फुटित हो रहा हो |
हे बृद्धमाता ! तुम जगत की दीन संतानो पर अपनी कृपा दृष्टि अवश्य बनाये रखना ,
तुम मुझसे रूठ मत जाना ,क्यों कि एक मात्र तुम ही इस जगत की रक्षक और तारनहार हो|
तुम्हारा आशीर्वचन ही हमारे भविष्य का प्रकाश पुंज है ||
||| जय बृद्धमाता ||

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh