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“भारत भाग्य विधाता”

SUBODHA
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प्रारम्भ करते हैं -श्री राम कुमार वर्मा की एक कविता की प्रथम पंक्ति से –
“हे ग्राम देवता नमस्कार! सोने चांदी से नहीं किन्तु, मिट्टी से तुमने किया प्यार”
कुछ इसमें जोड़ना भी चाहता हूँ – ” हे ग्राम देव ! लेखनी से भी करो प्यार”.
यह अभी तक का मेरा व्यक्तिगत अनुभव है- सबसे कठिन काम है -मज़दूरी करना और खेती करना. एक मज़दूर, बना रहा बहुमंज़िला ईमारत अपने परिवार से कोसों दूर रहकर, अपनी जान जोखिम में डालकर. कब मर जाये,क्या पता. शायद उसके चारो ओर मौत ही तांडव करती रहती हर पल,शरीर के अस्थिपंजर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते.पर काम करते -करते वो हड्डियां भी फौलादी हो गयी,शायद इन्द्र को भी उनकी आवश्यकता पड़ जाये, अपना वज्र बनाने के लिए,अपना पद बचाये रखने के लिए ,अंत में दुष्टों का संहार करने के लिए. पर जैसे उसकी और कोई इच्छा ही नहीं,ज्यादा कुछ वह जानता ही नहीं.केवल अपना कर्म और मज़दूरी के पैसे का ही हिसाब रखना जानता हो.
वैसे ही कृषक है- अपना कार्य करता, कंकरीली -पथरीली,ऊसर -बंजर भूभि को भी उपजाऊ बना देता,अपने खून -पसीने को लगाकर. बीज बोता.पैदावार पर उसका कोई जोर नहीं.निर्भर करता, घमंडी इन्द्र के बादलों के ऊपर, कब कैसे बरसेंगे ,देखता रहता अपनी कमजोर गर्दन को उल्टा किये हुए,आसमान की ओर ,कब -कैसी बारिश आएगी,डरता रहता हर -पल कहीं अतिवृष्टि ,अनावृष्टि न हो जाये ,ओले न पड़ जाये. कहीं फसल उठते -उठते,फिर से न बरस दे,भूशा भी जानवर को खिलाने के लिए ढोना है आदि -आदि.
पर फिर भी हार नहीं मानते ये वीर पुरुष,धरती का सीना चीर कर अपने रस्ते तैयार करते है , कुछ तो और भी महान होते हैं,अपने जवान बेटों को देश की सीमाओ पर भेज देते,ताकि विदेशी घुसपैठिये हमारे ऊपर बुरी दृष्टि न डाल सकें.पर इन्द्र पर क्या फर्क पड़ता,वाजबहादुर अपनी आदत से कहाँ वाज आने वाले,कोई जवान मरता ,तो कहते मरने के लिए ही तो जाते हैं आर्मी में.उन्हें यह नहीं मालूम ,जब सीधा शांत व्यक्ति उग्र रूप लेता है ,तो रूद्र बन जाता है,तब इंद्रासन भी डांवाडोल होकर सीधा रसातल चला जाता है.
दुनिया में जितने भी अच्छे और विकास कार्य हो रहे हैं ,वो सब आम आदमी ,और उसके बच्चो ने ही किये और आगे भी करते रहेंगे,केवल आवश्यकता है अपने बल -पौरुष को याद करने की.
“जिस दिन आम आदमी खुद को खास समझने लगेगा,उसी दिन से उसके दिन बदल जायेंगे”.

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