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मदर्स डे (11 मई): सारी दुनिया है एक कहानी, तुम इस कहानी का सार हो ‘मां’

SUBODHA
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माँ की प्रकृति ममतामयी है या कुछ यूँ कहूँ यह प्रकृति ही ममतामयी माँ है.उसका अनुशाशन भी प्यार से लबालब भरा हुआ है ,तभी तो माँ की ऊंची और डांट भरी आवाज़ सुनकर भी शिशु हँस देता है. तभी तो हमारे आचार्यों ने कहा है -माँ का स्थान पिता से भी कई गुना ऊंचा है.माँ ,जीव की प्रथम आचार्या ,प्रथम पाठशाला और अंतिम विश्वविद्यालय है.माँ , शिशु को ध्रुव-प्रह्लाद बना सकती है ,अखंड ब्रह्माण्ड के नायक को राम -कृष्ण के रूप में अपनी गोद और धरती पर उतार सकती है, किसी इंग्लिश राइटर का quatation – “जो हाथ पालना हिलाते है,वही किसी दिन शासन भी करते हैं” पर विचार करें तो हमें लगता है -माँ ,बच्चे को राजा बनाने की काबिलियत रखती है.हम पितृ ऋण से उद्धार हो सकते हैं,पर मातृ ऋण से नहीं.यदि हम अपने शरीर की चमड़ी निकलवाकर उसकी जूतियां बनवाकर भी माँ को समर्पित कर दें ,तो भी माँ से उद्धार नहीं हो सकते,क्यों की यह शरीर तो उसी का है,हमने उसे अपने पास से कुछ नहीं दिया. हमने पृथिवी को भी माँ माना.सुबह उठकर हमने अपने मस्तक को इसकी रज से शोभित करना सीखा है -माता भूमिः ,पुत्रो अहम पृथ्व्या;समुद्र वसने देवी…………….पाद स्पर्श क्षमश्व में , के उद्घोष के साथ.
यह धरती वीर प्रसवनी है.इसके गर्भ से सीता जैसी पुत्री ने जन्म लिया,जो “उद्भवस्थितिसंहारकारिणी” है.
माँ हमेशा अपनी संतान का उत्थान ही सोचती है.इस देश में एक गीत है -“माँ का दिल”.उसमे मरने के बाद में भी माँ का दिल बोलता -बच्चे तुझे कहीं चोट तो नहीं आयी.इस देश की माटी ने विश्वगुरु और विश्ववंद्य लाल जाये है. लाल-बाल और पाल, ऊधम सिंह ,मंगल पाण्डेय ,भगत सिंह ,आज़ाद ,राजगुरु ,अशफ़ाक़ ,राम प्रसाद विस्मिल ,लक्ष्मीबाई ,अहिल्याबाई आदि आदि अनेक अंतहीन सूची है इन नामों की.
पर जब आज पूरी प्रकृति को उसकी ही संतान ने दूषित कर दिया हो,तब माँ-बेटे का पवित्र सम्बन्ध भी कलंकित हो रहा है. इस निर्मल नाते में भी कुष्ठ रोग होने लगा है. देश की सभी नदियां दूषित हों रही हैं,माँ गंगा,जिसने भीष्म जैसे लाल जाये ,जिसके तटों पर बैठकर न जाने कितने मूर्ख, कालिदास बन गए. जिसने न जाने कितने पापियों को महात्मा में परिणीति कर दिया,भोगियों को योगी बना दिया,रोगियों को हृष्ट -पुष्ट बना दिया,निरक्षर को पाणिनि बना दिया,वही आज सबसे अधिक दूषित कर दी मानव ने.कहीं न कहीं हम भटक गए हैं ,अपने पथ से.
हमें प्रकृति को शुद्ध करने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए ,तभी सारी सृष्टि की सार “माँ” का गौरव बचा रहेगा.
जय जननी,जय जन्मभूमि.

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