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रंजन का शाब्दिक अर्थ है -अच्छा लगना,खुश रहना,हर्षित होना.अब ये शब्द जिसका उपसर्ग बन जाये उसके सम्बन्ध में यह बात करने लगता है.जैसे-चितरंजन,मनोरंजन ,आत्मरंजन,जनरंजन ,मुनि रंजन आदि .
प्रत्येक चेतना अलग -अलग तरीके से रंजित होती है.कुछ चेतनाएं मनोरंजन तक ही सिमिट कर रह जाती हैं ,और कुछ मनोरंजन से चितरंजन और आत्म रंजन -जनरंजन तक की यात्रा पूरी करती हैं.
अब दो ही शब्दों पर विशेष बात करते हैं – मनोरंजन और आत्मरंजन.
मनोरंजन –
संस्कृत का एक श्लोक –
काव्य शाश्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमिताम्
व्यसनेन च मूर्खाणाम् निद्रा कलहेन वा. जिसका शाब्दिक अर्थ -बुद्धिमानो,मनीषियों का समय कविता ,लेख ,अच्छे धर्म साहित्य के पढ़ने से व्यतीत होता है,जब कि बुद्धिहीन जीव व्यसन (बुरे कर्म -चोरी ,शराब,जुआँ आदि ),सोते रहने या लड़ाई -झगड़ा करने में अपना समय व्यतीत करता है.
एक कहावत है -“खाली दिमाग, शैतान का घर”. इस संसार की प्रत्येक चेतना में विचार उठना स्वाभाविक है,जैसे समुद्र में तरंग उठती हैं ,वैसे ही चित्त में विचार बनते -विगड़ते हैं.उसमे भी मानवीय मष्तिष्क में तो सबसे अधिक.प्रकृति की सबसे उत्कृष्ट कृति है-मानव.पहले मनोरंजन का साधन काव्य -शाश्त्र था ,अब टेलीविज़न है.हो भी क्यों न विज्ञान के माध्यम से हमें सब कुछ पता होता है,पर टेलीविज़न का रिमोट हमारे हाथ में ही है ,आप को कैसा मनोरंजन चाहिए ये आप तय करते हैं. सामने से क्या परोसा जा रहा है ,यह चिंता का विषय नहीं है .हम क्या खा रहे है ,यह चिंतनीय है.आप खाने से मना भी कर सकते है.पर समय इतना बदल गया -ब्राह्मण के नाम से इतराने वाले लोग ही गौमाँशभक्षी बन गए. जिनकी यज्ञशालाएं रक्त बिन्दुओं से दूषित हो जाती थीं,उन्हीं के रसोईघरों में भी रक्त उबलने लगा. और हमने कहा -समय ख़राब है,कलियुग का प्रभाव है. हमने अपने आप को कभी नहीं सुधारा.जिन्हे हमने पंच परमेश्वर की संज्ञा दी,वो शैतान थे. पंचायत करना ,उन्होंने अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं ,वरन मनोविनोद समझा. समाज का ताना -बाना ऐसा बिगड़ा,कि पुलस्त्य के कुलदीपक भी बलात्कार को मनोरंजन समझने लगे.
हमने मनोरंजन से आत्मरंजन की यात्रा नहीं कर पाई,जनरंजन क्या कर पाते. हम तो मनोरंजन का अर्थ भी नहीं समझ पाये.हम बिना जल के कुएं में अौंधे मुंह गिर गए और पानी -पानी चिल्लाकर अपना अमूल्य जीवन गवां दिया,जो कि किसी से उपहार स्वरुप मिला था.
अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गयी खेत…………………………………
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