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आजकल हर इंसान की जुवां पर यह शब्द है.सरकार की भी चिंता का विषय यही है.जनता महंगाई कम होने की आस में तख्तापलट कर देती है.पर नयी सरकार बनते ही,महंगाई पुनः सुरसा जैसा विकराल मुख धारण कर के आम जनता को निगलने के लिए आतुर हो जाती है. पर कोई हनुमान नज़र नहीं आता,जो इस महंगाई रूपी सुरसा को शांत कर सके.
मैंने भी समाज में कुछ देखा,विश्लेषण किया,सहमति या असहमति पूर्णतया आप पर निर्भर है-
१.) आजकल हर इंसान बहुत आत्मतोषी और आत्मपोषी हो गया है,सभी को तरक्की करनी है.
चाहे ग्राहक, पूरा का पूरा नष्ट नाबूत हो जाये.डॉक्टर को रोगी की नहीं,पैसों की चिंता है.शिक्षक को शिक्षा की नहीं,धन के अम्बार लगाने हैं.ऐसे ही हर इंसान अपनेपन में व्यस्त है,ये अच्छे संकेत नहीं हैं.
२.)एक २० -३० घरों वाली गली में ५-६ किराने /जनरल स्टोर्स/सब्जी की दुकानें होगी,एक ५० -६० घर वाले गांव में ५-१० किराने की दुकानें होगी,भले ही आप की आवश्यकतानुसार वहां पर वस्तु उपलब्ध न हो. ये सब दुकानदार,लाभ तो कमाएंगे और हमेशा अधिक लाभ कमाने की चेष्टा करेंगे.
ऐसा भी हो सकता है एक गांव/शहर की हर सोसाइटी /हर एक मोहल्ले में एक ही सहकारी किराना/सब्जी स्टोर हो,एक अच्छा मेडिकल स्टोर हो. हर एक वस्तु का एक निर्धारित मूल्य हो.हर आवश्यक वस्तु हर समय उपलब्ध हो.
पर सहकारिता करना हमें आता ही नहीं,हमें मात्र वाद ,विवाद और दुर्वाद करना आता है.
३.) यही हाल ट्रांसपोर्ट का है,हर एक इंसान एक ऑटो खरीदना चाहता है,अब तो गांवो में भी ऑटो की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है. शहर में तो बहुतायत संख्या में है.
एक १०० यात्रियों से भरी बस के आगे ३-४ ऑटो आ जाएँ,तो ट्रैफिक जाम होने लगता.भले ही उन चारो ऑटो में कोई सवारी ही न हो. चार ऑटो की वजह से १०० लोग परेशान,और जो ऑटो का डीज़ल,एलपीजी,समय ,मानव शक्ति , वह सब एक्स्ट्रा में जा रहा,अब आप बताओ दाम बढ़ेंगे नहीं, तो कम होंगे क्या.
ऑटो भी आवश्यक हैं ,पर कहाँ ,कितने ,कब तक यह सब प्रशाशन और सरकार को सुनिश्चित करना है. एक नियत स्थान से २० -३० लोग एक ही दूूसरे नियत समय पर आते -जाते हों ,तो १० ऑटो की बजाय ,१ मिनी बस का उपयोग होना ,एक अच्छी बुद्धिमत्ता का उदाहरण हो सकता है.
ऐसे ही यदि एक सोसाइटी से १० -२० लोग एक ही ऑफिस में ड्यूटी करने जाते हों,तो हर एक इंसान अपनी गाड़ी से जाने के बजाय एक मिनी बस से भी जा सकता है.
रोड पर ट्रैफिक कितना कम होगा.कितना पेट्रोल,डीज़ल,एलपीजी,समय ,पैसा बचेगा,प्रति व्यक्ति मानसिक स्ट्रेस और वातावरण का प्रदूषण कितना कम होगा,इसका आंकलन आप भी कर सकते हैं.
ऐसे अनेक उदाहरण आप सबके आसपास होंगे.पर हमारा मानना है ,कोई मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री आकर सब कुछ ठीक कर देगा.
भारत भूषण भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के शब्दों में –
तुम्हें गैरों से कब फुरसत ,हम अपने गम से कब खाली!
चलो बस हो चुका मिलना, न हम खाली ,न तुम खाली!!.
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