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“मैं क्यों लिखता हूँ?”

SUBODHA
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specifically for aaryan,my son—————————————–
मैं लिखता नहीं ,मिटाने को ;मैं लिखता हूँ ,मिट जाने को.
मैं न लिखता कुछ पाने को ;मैं लिखता हूँ खो जाने को.
मेरे हाथों में शक्ति कहाँ ,लेखनी थाम मैं क्रांति करूँ;
मैं तो लिखता हूँ प्रियवर ,लिखना तुम्हे सिखाने को.
मेरे शब्दों में शक्ति कहाँ ,सारा ब्रह्माण्ड हिलाने को ,
मैं तो कहता हूँ कुछ ,केवल तुम्हे जगाने को.
ऐसे लोगों की कमी नहीं,जो हर -पल मीठा बोलेंगे,
ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो कानो में मिस्री घोलेंगे,
ठकुरसोहाती कहने वाले आसपास हर -पल रहते,
मैं- ही- मैं जपने वाले, जग में बहुतायत पलते.
पर कड़वा कहने -सुनने वाले, जग में विरले ही मिलते,
मेरी कड़वी सुनकर के ,अपना जीवन मीठा कर लो.
मेरे इन स्वेदविन्दुओं से ,जीवन बगिया संचित कर लो.
भाग्य-भविष्य बताने वाले, राहगीर मिल जायेंगे,
पर भाग्य बदलने वाले पाणिनि,विरले ही बन पाएंगे.
लेखनी थाम तुम प्रारब्ध बदल लो ,यही सिखाने आया हूँ.
अपनी जीवन बगिया के कुछ पुष्प सुंघाने आया हूँ.
“भले ही माँ -बाप आधी रोटी कम खाएं ,पर बच्चे को पढ़ाये अवश्य” -श्री लज्जाराम दुबे (मेरे बाबा ).

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