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इस श्रष्टि की व्यापकता और गहराई को समझ पाना किसी की भी बुद्धि से परे है,ईश्वर को छोड़कर. कुछ वृक्ष,पौधे ऐसे भी हैं जो हर पल जीवन दायिनी प्राण वायु का ही उत्सर्जन करते हैं जैसे -पीपल ,तुलसी.
कुछ दिन में ऑक्सीजन और रात्रि में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करते.इसीलिये उन वृक्षों के नीचे रात्रि में विश्राम नहीं करना चाहिए.हमारे ऋषि-मुनि प्रकृति के मध्य में रहे ,उन्होंने पशुओं और वृक्षों से सब कुछ और/अथवा बहुत कुछ सीखा.
मेरी भी कुछ पीपल पर अभिव्यक्ति है-
मैं पीपल,भगवान की बिभूति,
गीता में अर्जुन को स्वयं प्रभु ने बताया.
मेरे साये में बैठकर,
न जाने कितने ध्यानस्थ और तटस्थ हो गए.
अपने शरीर ,मन ,चित्त,अहंकार ,इन्द्रियों को भूलकर ,
आत्मद्रष्टा हो गए.
मुझे लगाया नहीं जाता ,मैं स्वयं उगता हूँ.
जैसे सूर्य और चन्द्र उगते है ,ऐसे ही मैं भी उगता हूँ.
जैसे सूर्य चन्द्र नहीं छिपते ,मैं भी नहीं छिपता.
केवल अदृश्य,ओझल हो जाता हूँ,अपने वैरियों की नजरों से.
अपना सर आसमान की ओर करके भी,मेरा भक्त मुझे देख सकता है.
कभी हिमालय की चोटी पर,और कभी जर्जरित भवनों के खंडहरों में.
मैं कंक्रीट की दीवाल और पत्थर की छाती चीरकर निकल आता हूँ,
अपने भक्त की रक्षा के लिए,प्रकृति की प्राणवायु के संतुलन के लिए.
मेरे लिए छुआछूत,कीचड वगैरह कुछ नहीं,
मैं स्वयं सबसे पवित्र , प्रज्ज्वलित यज्ञाग्नि जैसा दैदीप्यमान.
गंगाजल जैसा निर्मल, वातावरण में सतत प्राणवायु रूप में प्रवाहवान.
मेरी जड़ों में अनगिनत ऋषि -मुनियों की तपस्या निहत है,
मैं भारत का पुरातन पूजनीय इष्ट हूँ.
मैं ईश्वरीय कृति का समिष्ट हूँ.
श्रष्टि के आदिकाल से मैं हूँ,
और अंत में भी मैं ही रहूँगा.
क्योंकि मेरी प्रत्येक सांस परोपकार में ही रत है.
“जय प्रकृति देवी”
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