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“सूखे पेड़ के शब्द”

SUBODHA
SUBODHA
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मैं सूखा दरख्त ,
खड़ा हूँ व्यस्त सड़क के किनारे,
हाँ मैंने कई वर्ष,कई दसक ,
समाज की सेवा की,
और प्रकृति की उपासना .
पर अब मैं सूख चुका हूँ,
पूरी तरह से निर्जीव हो चुका हूँ,
असंख्य गहरी जड़ो से लेकर चोटी तक,
मैं चेतनाशून्य हो चुका हूँ.
शायद द्वापर के यमलार्जुन की तरह ,
मैं भी शाप मुक्त हो चुका हूँ ,
अतः मेरी आत्मा भी उसे त्यागकर,
अन्यत्र प्रस्थान कर चुकी है,
किसी अन्य देह की खोज में.
पर मेरा यह मृत शरीर,
जो मज़बूत किले की भांति ,
एक महानगर की मुख्य सड़क के किनारे,
खड़ा है,
तुम्हे सन्देश देना चाहता है ,
मुझे जड़ से काटकर,
मेरा अंतिम संस्कार करो,
अपने घर के बेड,दरवाजे ,कुर्सी ,मेज़ बनवाओ,
जिस पर तुम्हारे बच्चे एन्जॉय करें ,खेले -कूदें,
और तुम भी ऑफिस में भी ,
और अपने घर पर भी मुझ पर आराम फ़रमाओ.
जो बचा -खुचा कत्तल हो उसे किसी गरीब को दे दो,
जिससे उसकी साल भर ,रोटी सिकेगी,
सर्दियों में भयंकर शीत से मैं उसकी रक्षा करूंगा,
उस गरीब की आत्मा से मेरे लिए कुछ दुआ निकलेगी,
जो मेरा कई जन्मो तक साथ देगी.
नहीं तो किसी दिन,
तेज़ हवा के झोंके से,
मेरी सूखी डालें टूटेगी,
और भगवान न करे ,पर
यदि भावीवश किसी वाहन पर गिर पड़ीं,
तो घटना,दुर्घटना या बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है,
किसी के पूरे परिवार के मरने का कारण,
मुझे घोषित कर दिया जाएगा,
मेरी जीवन भर की परोपकार की साख पर,
तुम सब थूंकोगे,
समूचा सभ्य और असभ्य मानव समाज,
मुझे ही नहीं वरन मेरे वंशजों को भी,
पानी पी -पी कर कोसेगा,
और मुझ सूखे हुए के साथ -साथ,
मेरे हरे -भरे कुल को भी काट डालेगा.

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