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“हनुमानबाहुक”………………………पूर्ण.

SUBODHA
SUBODHA
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|| जय हनुमान जी महाराज ||
सिंहिका संहारि बल ,सुरसा सुधारि छल,
लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारि है |
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार ,
जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ||
तोरि जमकातरि मंदोदरि कढ़ोरि आनी,
रावनकी रानी मेघनाद महतारी है |
भीर बांहपीर की निपट राखी महाबीर,
कौनके संकोच तुलसीके सोच भारी है ||२७ ||

तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर,
भूलत सरीरसुधि सक्र-रवि -राहुकी|
तेरी बांह बसत बिसोक लोकपाल सब ,
तेरो नाम लेत रहे आरत न काहु की ||
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि,
हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहूकी |
आलस अनख परिहासकै सिखावन है,
एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी ||२८||

टूकनको घर-घर डोलत कंगाल बोलि,
बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है |
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर ,
आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है ||
इतनो परेखो सब भांति समरथ आजु ,
कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसों है |
सासति सहत दासि कीजे पेखि परिहास ,
चीरीको मरन खेल बालकनको सो है || २९ ||

आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें,
बढ़ी है बांहबेदन कही न सहि जाति है |
औषध अनेक जंत्र -मंत्र -टोटकादि किये ,
बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ||
करतार ,भरतार ,हरतार,कर्म ,काल ,
को है जगजाल जो न मानत इताति है|
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत,
ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है ||३० ||

दूत रामराय को ,सपूत पूत बाय को ,
समत्थ हाथ पाय को सहाय असहाय को |
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत ,
रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ||
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज ,
सीदत सुसेवक बचन मन काय को |
थोरी बांहपीर की बड़ी गलानि तुलसीको ,
कौन पाप कोप ,लोप प्रगट प्रभाय को ||३१||

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग ,
छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं |
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम ,
रामदूत की रजाइ माथे मान लेत हैं||
घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग ,
हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं|
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को ,
सोध कीजे तिनको जो दोष दुःख देत हैं ||३२||

तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों,
तेरे घाले जातुधान भये घर -घर के|
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज ,
सकल समाज साज साजे रघुबर के ||
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत ,
सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके |
तुलसीके माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ,
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगर के || ३३ ||

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न ,
कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये |
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष,
पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये ||
अंबु तू हौं अंबुचर,अंब तू हौं डिंभ ,सो न ,
बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये |
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि ,
तुलसी की बांह पर लामीलूम फेरिये ||३४ ||

घेरी लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं,
बासर जलद घन घटा धुकि धाई है |
बरसत बारि पीर जारिए जवासे जस ,
रोष बिनु दोष ,धूम मूल मलिनाई है ||
करुनानिधान हनुमान महाबलबान,
हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौंजे तैं उड़ाई है |
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,
केसरीकिशोर राखे बीर बरिआई है ||३५ ||

सवैया

रामगुलाम तुही हनुमान
गोसाईं सुसाईं सदा अनुकूलो |
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू
पितु मातु सो मंगल मोद समूलो ||
बाँहकी बेदन बाँहपगार
पुकारत आरत आनंद भूलो |
श्रीरघुबीर निवारिये पीर
रहौं दरबार परो लटि लूलो ||३६ ||

घनाक्षरी

काल की करालता करम कठिनाई कीधौं,
पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे |
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन,
सोई बांह गही जो गही समीरडावरे ||
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि,
सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे |
भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान ,
जानियत सबहीकी रीति राम रावरे|| ३७ ||

पायँपीर पेटपीर बांहपीर मुंहपीर ,
जरजर सकल सरीर पीरमई है |
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह,
मोहिपर दवरि दमानक सी दई है ||
हौं तो बिन मोल के बिकानो बलि बारेही तें,
ओट रामनाम की ललाट लिखि लई है |
कुंभजके किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि,
हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है ||३८ ||

बाहुक -सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि,
मुंहपीर -केतुजा कुरोग जातुधान हैं |
रामनाम जगजाप कियो चहों सानुराग,
काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ||
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ,
जिनके समूह साके जागत जहान हैं |
तुलसी सँभारि ताड़का -संहारि भारी भट,
बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं||३९ ||

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो ,
रामनाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं ||
परयो लोकरीति में पुनीत प्रीति रामराय,
मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं ||
खोटे -खोटे आचरन आचरत अपनायो,
अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं |
तुलसी गोसाईं भयो भोंड़े दिन भूल गयो ,
ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ||४० ||

असन -बसन -हीन बिषम-बिषाद -लीन,
देखि दीन दूबरो करै न हाय-हाय को |
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो ,
दियो फल सीलसिंधु आपने सुभाय को ||
नीच यहि बीच पति पाइ भरुहाइगो,
बिहाइ प्रभु -भजन बचन मन कायको |
तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस ,
फूटि-फूटि निकसत लोन रामराय को ||४१ ||

जिओं जग जानकीजीवनको कहाइ जन,
मरिबेको बाराणसी बारि सुरसरि को |
तुलसीके दुहुँ हाथ मोदक है ऐसे ठाँउ,
जाके जिए मुए सोच करिहैं न लरिको ||
मोको झूठो सांचो लोग राम को कहत सब ,
मेरे मन मान है न हरको न हरि को |
भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत,
सोउ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ||४२ ||

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित ,
हित उपदेसको महेस मानो गुरुकै|
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय ,
तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुरकै ||
ब्याधि भूतजनित उपाधि काहू खलकी,
समाधि कीजे तुलसीको जानि जन फुरकै |
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ ,
रोगसिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै||४३ ||

कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों,
कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये |
हरष विषाद राग रोष गुन दोषमयी,
बिरची बिरंचि सब देखियत दुनिये ||
माया जीव कालके करमके सुभायके,
करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये |
तुम्हतें कहा न होय हाहा सो बुझैये मोहि ,
हौं हूँ रहो मौन ही बयो सो जानि लुनिये || ४४ ||

||| जय श्री राम |||

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