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“हम क्यों पढ़े?”

SUBODHA
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पढ़ने -लिखने की प्रवृत्ति,दुर्लभता से संभव है | समाज का एक वर्ग ऐसा भी सोचता है ,पढ़ -लिखकर वह क्या करेगा | खेती करने से अनाज तो पैदा होता | पढाई पर पैसा खर्चकर के कौन सा सब कलक्टर ही बन जाते हैं,बाद में तो ऐसे लोग खेत भी नहीं जोत पाते | पर कुछ संघर्षरत किसान और मज़दूर भी कठिन परिश्रम कर के अपनी संतान को पढ़ाने के लिए जटिल प्रयास करते हैं |
जब इंसान को अपने निरक्षरता की वजह से होने वाली तकलीफों का अहसास होता है ,तब वह अपनी आगामी पीढ़ी को पढ़ते हुए देखने का सपना संजोने लगता है और बच्चों को सदुपदेश और आप बीती सुनाने लगता है | अतः मेरा ऐसा व्यक्तिगत मानना है,देश के इतिहास को जानने के साथ -साथ हर इंसान को अपना इतिहास भी याद रखना अत्यावश्यक है |
हमारे बाबा जी पड़ोस के गांव के एक हमउम्र सरकारी डॉक्टर के पिता जी के बारे में बताया करते थे -कहते, इनके पिता जी के पास कही से कोई ,पत्र आता था ,तो पड़ोस के गांव में किसी दूसरे से पढ़वाने जाते थे,उन्होंने अपने सभी बच्चों को पढ़ाया,एक प्राइमरी में अध्यापक हो गए ,दूसरे सरकारी अस्पताल में कम्पाउण्डर ,तीसरे फ़ौज में | अतः आवश्यक नहीं कि नौकरी पाने के लिए ही पढ़ा जाये,” जीवन जीने के लिए भी शिक्षा अतिआवश्यक है,कदम -कदम पर हमें पढाई -लिखाई की आवश्यकता पड़ती है | शिक्षा मानव को सुचारुरूप से जिंदगी जीना सिखाती है”|
ऐसे ही एक बार मैं ,भोपाल में ट्रैन टिकट आरक्षित करवाने गया,तो एक इंसान अपना भी रिजर्वेशन फार्म मेरे पास भरवाने के लिए आया ,मैंने एक का फार्म भर दिया,तो दूसरा आया ,साथ में मेरा दोस्त “रवि पाटिल” भी था,वह बोला -दुबे, अच्छा काम कर रहा है ,पर यही करता रहा तो शाम यहीं हो जाएगी,चल चलते हैं | इसीलिये कुछ भी करने के लिए पढ़े -लिखे होना जरूरी है |
वैसे तो शिक्षा पाने की एक उम्र है ,पर यदि वह उम्र भी बीत गयी ,तो भी पढ़ो,पढ़ना सीखो | ज्ञान, इंसान का अगले जन्म में भी काम आता है |

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