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आँखे बहती हुयी सदा नीरा हुयी हैं , विरह गीत गा गा के भावनायें मीरा हुयी हैं ….

मेरी अभिव्यक्ति
मेरी अभिव्यक्ति
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आँखे बहती हुयी सदा नीरा हुयी हैं .
विरह गीत गा गा के भावनायें मीरा हुयी हैं ||
सुनहरे सपन सूख तपती रेती हुयी हैं .
पांव छाले पड़े ज़िन्दगी वेग खोती हुयी है ||
चिरागों में लौ झटपटाती हुयी हैं .
इन्हे देख कर अंधेरों को आशा हुयी है ||
भटकती हुयी साँस थम सी गयी है .
कशमसाती हुयी मौत मिली हंसती हुयी है ||
ह्रदय में बसी कोई कणिका चुभी है .
यही आज फिर से अधीरा हुयी है ||
खुले जख्म से पीड़ा रिसती हुयी है .
सहन की परीक्षा लो पूरी हुयी है ||
जिंदगी मेरी नईया बिन खेवईया
प्रभंजन में डगमगाती बेसहारा हुयी है ||
चोट पर चोट मिलती, राधा हुयी है .
आँख ज्योति खोती टूटकर सितारा हुयी है ||
अंतस की तलहटी में वेदना के कंकण बचे हैं .
विनय संवेदना सूखती धारा हुयी ||
आँखे बहती हुयी सदा नीरा हुयी हैं .
विरह गीत गा गा के भावनायें मीरा हुयी हैं ||

आँखे बहती हुयी सदा नीरा हुयी हैं .
विरह गीत गा गा के भावनायें मीरा हुयी हैं ||
सुनहरे सपन सूख तपती रेती हुयी हैं .
पांव छाले पड़े ज़िन्दगी वेग खोती हुयी है ||
चिरागों में लौ झटपटाती हुयी हैं .
इन्हे देख कर अंधेरों को आशा हुयी है ||
भटकती हुयी साँस थम सी गयी है .
कशमसाती हुयी मौत मिली हंसती हुयी है ||
ह्रदय में बसी कोई कणिका चुभी है .
यही आज फिर से अधीरा हुयी है ||
खुले जख्म से पीड़ा रिसती हुयी है .
सहन की परीक्षा लो पूरी हुयी है ||
जिंदगी मेरी नईया बिन खेवईया
प्रभंजन में डगमगाती बेसहारा हुयी है ||
चोट पर चोट मिलती, राधा हुयी है .
आँख ज्योति खोती टूटकर सितारा हुयी है ||
अंतस की तलहटी में वेदना के कंकण बचे हैं .
विनय संवेदना सूखती धारा हुयी ||
आँखे बहती हुयी सदा नीरा हुयी हैं .
विरह गीत गा गा के भावनायें मीरा हुयी हैं ||

विनय राज मिश्र ‘कविराज’

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