मेरी अभिव्यक्ति
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डरने लगी है आज किरन
कि घर से जो निकली
कोई कुहासा आकर मुझको
हर लेगा .
मेरी मर्यादा की पूँजी
कल अख़बारों में बेचेगा .
और दलीलों की चौखट में
आँखों का पानी
हर लेगा .
निकलूं जब भी मैं
किसी गली से
यहाँ बूढ़े भी ताने कशते हैं
और जवानी के मद में
बच्चे भी हद करते हैं .
अपनी लज्जा, शर्म, हया
आँशू में सहेजे चलती हूँ
वरना संसार ऐसा है
कि खुल कर नीलामी
कर लेगा .
डरने लगी है आज किरन
कि घर से जो निकली
कोई कुहासा आकर मुझको
हर लेगा .
विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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