मेरी अभिव्यक्ति
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शब्दों की समिधा को कर स्वाहा
मैं खुद अपनी आहुति देता हूँ .
स्वीकार करो हे पापनाशिनी
मैं और कहाँ कुछ दे सकता हूँ .
अविरल बहती बूंदों सी तुम
बहने को अपनी बंजर ह्रदय-धरा मैं देता हूँ .
बहो धरातल में भावों के
मैं तुम्हे निमंत्रण देता हूँ .
देख रहा हूँ अपलक तुमको
लो अश्रु-अर्घ्य मैं देता हूँ .
तुम्ही बनो मेरी स्याही
लो मन-व्योम पटल मैं देता हूँ .
माँ सांसो में बस जाओ तुम
मैं गीतराग गा देता हूँ .
हे गंगे तुम्हे समर्पित रोली, चन्दन
स्वीकार करो शब्दों से वन्दन .
लो अब चरणों में हे माँ गंगे
मैं ये कलम समर्पित करता हूँ .
विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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