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माँ देखता हूँ जब तकलीफ तेरी ख्वाबों में ,
मेरी पलकों से मेरी नींद तक उड़ जाती है ।
अब मुझको मयस्सर नहीं माँ का आँचल ,
ये सोच के धड़कन मेरी थम जाती हैं ।
जब बैठता हूँ मै किसी होटल में खाने रोटी ,
बूंदे आँसू की घी जैसे उस रोटी में बिखर जातीं हैं ।
जब आता हूँ माँ , मै घर देरी से ,
तेरी डांट की कमी खल जाती है ।
जब जाता हूँ तेरी आवाज ढूँढते हर कमरे में ,
क़ैद कमरों में तन्हाईयाँ डस जातीं हैं ।
जब जाता हूँ मेरी माँ मै अपने बिस्तर में ,
तेरी लोरी मेरे कानो से कहीं दूर ठहर जाती हैं ।
होता है जब दर्द मुझे अचानक कोई ,
मेरे लबों से माँ शब्द से लिपटी एक चीख निकल जाती है ।
अभी क्यूँ सलामत है ज़िन्दगी मेरी ..?
क्यूंकि मेरे लिए , माँ भगवान से भी लड़ जाती है ।
उसकी दुवाओं में है वो असर ,
जो हर बला को बेअसर कर जाती है ।
जब होता हूँ मै किसी मुश्किल में ,
वो मुश्किल माँ के आँसुवों के सैलाब में बह जाती है ।
विनय’ मौत भी तुझसे हार जाएगी ,
क्यूंकि हर रोज़ माँ गायत्री जो गुनगुनाती है ||
विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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