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वो मेरा हुवा कि न हुवा इसका न मुझको कोई मलाल है …

मेरी अभिव्यक्ति
मेरी अभिव्यक्ति
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वो मेरा हुवा कि न हुवा इसका न मुझको कोई मलाल है .
जो अब तलक तेरे पास है अब भी उसके हाथों में , मेरा रुमाल है .||
वो मेरा हुवा कि न हुवा इसका न मुझको कोई मलाल है .||
मेरा जीवन कोई जवाब है या कि उलझा सा कोई सवाल है .
तेरी बाँहों से जो है लिपट रहा उसे श्पर्श तेरा है , मेरा ख़याल है .||
वो मेरा हुवा कि न हुवा इसका न मुझको कोई मलाल है .||
मैंने खोया तो बहुत कुछ है मगर तूने पाया है जिसे , वो मेरा सूखा गुलाब है .
तूने देखा है उसका तन छू कर इसलिए तू अब भी उससे अनजान है .
मैंने देखा है खुद को , उसकी रग रग में बहते . ये मेरी नजर का कमाल है ||
वो मेरा हुवा कि न हुवा इसका न मुझको कोई मलाल है .||
सारे रिश्ते हो गए, उसने सिन्दूर तेरा जो भर लिया ?
मेरा नाम लेते हो विनय , तो क्यों उसने आँखों में आंसू भर लिया ?
ये कुछ भी नहीं , इस मन से उस मन के मिलन का धमाल है ||
वो मेरा हुवा कि न हुवा इसका न मुझको कोई मलाल है .||

विनय राज मिश्र ‘कविराज’

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