मेरी अभिव्यक्ति
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तुम गंगा तट की पूनम हो.
मैं हूँ जंगल का अँधियारा.
तुम शरबत सी मीठी हो.
मैं सागर का पानी खारा.
तुम सोने सी स्वर्णिम हो .
मैं तार-कोल सा हूँ कारा .
तुम कर दो गर रोशन मुझको
तो बन जाऊं मैं ध्रुव तारा .
तुम गंगा तट की पूनम हो.
मैं हूँ जंगल का अँधियारा.
©विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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