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दिल करता है तेरे पायल का घुँघरू बन जाऊँ …
और तुम्हारे उजले चेहरे का कुमकुम बन जाऊँ ..
और तुम्हारे तन की सिहरन रोम रोम बन जाऊँ ..
और तुम्हारी गोरी कलाई का कंगन बन
जाऊँ ..
दिल करता है तेरे काँधे का तिल बन जाऊँ ..
अगर कहे तू मेरी सजनी तो तेरा साजन बन
जाऊँ ..
और तुम्हारी मादक आँखों का आँजन बन जाऊँ ..
और तुम्हारी नाक में जाना मैं बेशर बन जाऊँ ..
दिल करता है तेरे होंठो की लाली बन जाऊँ..
तेरी लचीली कमर पे यारा मैं
करधन बन जाऊँ..
और तुम्हारे तन का एक कोरा पल्लू बन जाऊँ..
और तुम्हारे कानों का कोई झुमका बन जाऊँ..
दिल करता है तू मेरी चंदा मैं तेरा चकोर बन जाऊँ..
और रूप निहारूँ तुझे पुकारूँ मैं पागल बन जाऊँ ..
दिल करता है तेरे अंदर घुलता स्पंदन बन जाऊँ ..
और तुम्हारे तन का कोई शीतल चन्दन बन जाऊँ..
दिल करता है तू मेरी जूही मैं तेरा भौरा बन
जाऊँ..
और तुम्हारे यौवन का कोई दुकूल बन जाऊँ ..
और तेरी वेणी में बिंध अधखिला फूल बन
जाऊँ ..
और तुम्हारे माथे की काली बिंदिया बन
जाऊँ ..
दिल करता है तेरी माँग का सिन्दूर बन जाऊँ ..
और तुम्हारे गले में लटकूँ कोई मंगल सूत्र बन जाऊँ ..||
(……और अंतिम पंक्ति हास्य के लिए, जी भर
ठहाका लगायें :)।)
तू मेरे बच्चे की मम्मी बन मैं पापा बन
जाऊँ …
रचनाकार -विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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