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दिल में मोहब्बत के नगमे हजार रखता हूँ,
मिले गर साथी कोई तो सारा जहाँ निशार करता हूँ
.
मेरे आलिन्द में सिसकियों की गूंजे हैं,
मैं अब भी उन्ही सिसकियों की मौन चीखों पे मरता हूँ.
मुझे नापने चले हैं कुछ लोग बड़े दरियादिल हैं.
मैं अपने अंतस में समन्दर समा के रखता हूँ.
कुछ जाम पी कर बयां करते हैं हम नशे में हैं .
मैं हूँ कि सारा मैख़ाना आंशुवों में मिला के रखता हूँ.
मेरी इन्तहां न पूछ मेरे मांझी से .
मैं सागर की गहराईयों का हिसाब रखता हूँ.
मेरे बालों में अब ढलने लगी हैं चाँदी सी सफ़ेदी .
मैं सूरज के सोने से पानी का हिजाब लगा के रखता हूँ.
बहुत करते हैं मुझे प्यार इस ज़माने में ,
वो लोग हैं कि मोहब्बत का हिसाब लगा रखते हैं.
हमने कर दीं है दुनिया जीते जी वशीयत जिसको .
वही हैं कि हमें सरेआम बदनाम करते हैं .
उससे कह दो कि मेरी ख़ामोशी सत्ता की लाचारी नहीं .
मैं अपनी जुल्फों में तूफां समेटे रखता हूँ .
हर खूबी खामी जहाँ की रखता हूँ
’विनय’ हूँ आँखों में शोले सजा के रखता हूँ .
विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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