मेरी अभिव्यक्ति
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पड़ोस के दो बेटों में बँटवारा हुवा
बूढ़ा बाप कंपकंपाता बेसहारा हुवा |
सब उपेक्षित करते रहे इधर से उधर
माँ झीनी साड़ी लपेटे भटकती रही दर-ब-दर|
मैंने पूछा बाबा आपने हिस्से में क्या पाया
सींचा था जिस पौधे को लहू से, आज उसी ने कहर ढाया |
शाम ढली कि बंद हुवा घर का दरवाज़ा
बाप बैठा रहा किसी पेड़ के नीचे ,
माँ रुंधी रुंधी खटखटाती रही दरवाज़ा |
रात भर में ठिठुर के रह गए सब आँसू आँखों में .
माँ-बाप बेघर हुए घर से , बड़ी मशक्कत से लाठी उठाई हांथों में |
‘विनय’ ने पूछा सुबह बच्चो से ,
दादी-दादा कहाँ हैं दिखते नहीं .
एक ने कहा वो नहीं मेरे हिस्से में,
दूजे ने कहा क्या करें जो वो नहीं दिखते |
विनय राज मिश्र ‘कविराज’
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