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शुर्ख आँखों तले , नीर कल जो ढ़ले…

मेरी अभिव्यक्ति
मेरी अभिव्यक्ति
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शुर्ख आँखों तले , नीर कल जो ढ़ले,
बादलों के सभी , काजलों को धुले ||

घुल रही थी हवाओं में , नम खुश्कियाँ ,
भींगी भींगी सी , सोंधी सी खुशबू उड़े ||

रो रही है कहीं आज मीरा कोई
या की अम्बर मिले आज धरती तले ||

सबको चाहत बड़ी प्यास की है मगर ,
शुर्ख होंठों में कैसे अमृत मिले ||

हो रही हैं अजब हलचलें बाग़ में ,
और शाखों से गुल भी झरते मिले ||

टहनियाँ भी सूनी तड़पती रहीं ,
तितलियाँ भी प्यासी मरती रहीं ||

मधुता अश्क की विनय तुम पी गये ,
शेष पलकें सूनी मसलते मिले ||

शुर्ख आँखों तले , नीर कल जो ढ़ले,
बादलों के सभी , काजलों को धुले ……

विनय राज मिश्र ‘कविराज’

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