राजनीति में प्रतिद्वंदियों का एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपण तो आम बात है किंतु गुजरात विधान सभा चुनाव की तारीख ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है वैसे-वैसे कांग्रेस और भाजपा के बीच तीखे व्यंग्य वाणों का वार तेज हो गया है और ये वार सामान्य नहीं हैं. गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी विकास को मुद्दा बनाकर गुजरात में चुनाव लड़ना चाहते हैं पर वहीं कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का कहना है कि सच तो यह है कि नरेंद्र मोदी गुजरात में जिस विकास की बात करते हैं वो कांग्रेस की देन है और गुजरात में विकास की नीव कांग्रेस ने ही रखी थी. लेकिन इन सब के बीच सवाल यह है कि क्या गुजरात का चुनाव सोनिया बनाम नरेंद्र मोदी बनकर रह गया है या फिर बीजेपी बनाम कांग्रेस है? इन दोनों ही प्रश्नों का जवाब देना मुश्किल है. इस सवाल पर राजनीति की समझ रखने वाले विशेषज्ञ भी आज दुविधा में नजर आते हैं.
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चुनाव में जीत के लिए इस बार कांग्रेस ने बहुस्तरीय रणनीति बनाई है. कांग्रेस का पूरा ध्यान सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले और स्पेशल ग्रुप पर है. पर इन सब के साथ-साथ कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन में भूल नहीं करना चाहती है या सीधे तौर पर कहें तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारी हार के बाद इस बात को अच्छी तरह समझ चुकी है कि उम्मीदवारों का सही चयन भी जीत दिलाने में मदद करता है. कांग्रेस की तैयारियां तो चल रही हैं पर गुजरात में चुनाव प्रचार की लड़ाई आलाकमान संभालती हुई नजर आ रही हैं. क्योंकि लगता है आलाकमान इस बार अपने पुत्र राहुल पर भरोसा करना नहीं चाहती हैं. सही भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव का प्रचार करके राहुल ने बता दिया था कि अभी उन्हें और राजनीति की क्लास लेने की जरूरत है
गुजरात में 65 फीसदी वोटर 40 से कम उम्र के हैं इसलिए शायद काग्रेंस से लेकर बीजेपी तक अपना ज्यादा ध्यान युवाओं पर देना चाहती हैं. नरेंद्र मोदी ने युवाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए विवेकानंद यात्रा निकाली पर नरेंद्र मोदी ने विवेकानंद यात्रा के द्वारा ‘एक पंथ दो काज’ का काम किया. 1 अक्टूबर को अपनी विवेकानंद यात्रा के दौरान एक स्थानीय अखबार में छपी एक आरटीआई अर्जी पर आधारित रिपोर्ट के हवाले से दावा कर डाला कि सोनिया गांधी की विदेश यात्राओं पर सरकार ने 1,818 करोड़ रु. खर्च किए हैं. नरेंद्र मोदी अच्छी तरह जानते थे कि यह वो तीर है जो कमान से निकलते ही कांग्रेस की आलाकमान को घायल कर देगा पर इन दिनों यह सबसे बड़ा सच है कि कांग्रेस की आलाकमान को अरविंद केजरीवाल का तीर ही काफी घायल कर चुका है जिस कारण सोनिया का ध्यान गुजरात चुनाव से हटकर अपने दामाद रॉबर्ट वाड्रा के विवाद को संभालने की तरफ लग गया.
हालांकि मोदी को गुजरात दंगों पर घेरने की नीति कांग्रेस लगातार अपना रही है जिसके जवाब में मोदी केवल विकास की ओर ध्यान बनाए रखना चाहते हैं किंतु दंगों का नासूर उनका पीछा छोड़ता है या नहीं ये तो चुनाव का परिणाम ही बताएगा.
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