Menu
blogid : 321 postid : 941

क्यों खो रहे हैं आपा नीतीश कुमार ?

आजकल नीतीश कुमार अपने आपे में नजर नहीं आते हैं. लगता है कि शायद नीतीश कुमार अपने आपे को धीरे-धीरे खो रहे हैं पर क्यों खो रहे हैं यह चिंता का विषय तो नहीं पर बड़ा सवाल जरूर है. नीतीश कुमार जो बड़े दावे किया करते थे कि बिहार को विकास के उच्च स्तर तक ले जाएंगे पर आज अपने वादे को भूलते हुए नजर आते हैं. नीतीश कुमार का अपने वादों को भूल जाना जायज भी है क्योंकि उनका ज्यादा ध्यान अपने वादों को पूरा करने की तरफ नहीं बल्कि 2014 में होने वाले संसदीय चुनाव की तरफ है.


NITISH KUMARबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष श्रेणी वाले राज्य का दर्जा दिलाने के लिए ‘अधिकार यात्रा’ नाम से एक मुहिम छेड़ी है पर नीतीश को क्या पता था कि उनकी यह ‘अधिकार यात्रा’ नाम की मुहिम अब ज्यादा समय तक बिहार के लोगों को झांसा नहीं दे सकती है. नीतीश कुमार को उनकी ‘अधिकार यात्रा’ की जनसभाओं में जूते-चप्पल दिखाए जा रहे हैं. रास्ते में काले झंडे लेकर या अधनंगे होकर ‘मुख्यमंत्री वापस जाओ’ के नारे लगाए जा रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो बड़े-बड़े दावे तो करते हैं पर अपना इतना सा विरोध सहन नहीं कर पाए और गुस्से में आकर शोर मचाने वालों को ‘उठाकर बाहर फेंकवाने’ और ‘कचूमर निकलवा देने’ जैसी धमकी दे डाली.


नीतीश कुमार को हावी होकर राजनीति करने की आदत हो चुकी है. नीतीश कुमार जेडीयू के अध्यक्ष शरद यादव को दरकिनार करके राजनीति करने में लगे रहते हैं. याद होगा शरद यादव का बयान जिसमें शरद यादव ने कहा था कि सूरज इधर से उधर हो सकता है, लेकिन जेडीयू, नीतीश कुमार और शरद यादव कांग्रेस के साथ नहीं जाने वाले हैं. पर नीतीश कुमार को कहां मंजूर था कि शरद यादव नीतीश  कुमार पर हावी हो जाते. जब नीतीश कुमार से पूछा गया कि क्या वो यूपीए गठबंधन को समर्थन देंगे तो नीतीश कुमार ने इस प्रश्न के जबाव में कहा कि “जो भी पार्टी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगी, हम उसे केंद्र में समर्थन देंगे.” नीतीश कुमार का इतना कह देना काफी था यह बताने के लिए कि वो जेडीयू पार्टी के भले ही अध्यक्ष ना हों पर होने या ना होने से क्या होता है पार्टी में तो चलती उन्हीं की है.


Read:नीतीश कुमार: मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं……

नीतीश कुमार जब 26 नवम्बर, 2010 को बिहार के मुख्यमंत्री बने तो बड़े-बड़े वादे करने का जोश दिखाया और नीतीश कुमार ने वो सभी वादे किए जो एक राजनेता, नेता की गद्दी पर बैठने के बाद या पहले करता है…. पर नीतीश कुमार के वादे जमीनी सच्चाई से बिल्कुल अलग थे. वैसे भी किसी ने सच ही कहा है कि ‘वादे तो वादे होते हैं और वादों पर क्या भरोसा करना’. आज बिहार की स्थिति देखते हुए ऐसा ही लगता है कि जब नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से वादे किए होंगे तो यही सोच कर किए होंगे कि वादे ही तो कर रहा हूं…. पूरे नहीं भी हुए तो क्या?


लालू प्रसाद यादव की राजनीति को बिहार में जातिवादी राजनीति कहा जाता था और नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव की जातिवादी राजनीति का सदैव ही विरोध करते थे और कहा करते थे कि जिस दिन बिहार में नीतीश की सत्ता आएगी उस दिन से ही बिहार में जातिवादी राजनीति समाप्त हो जाएगी. बिहार की जनता लालू प्रसाद की जातिवादी राजनीति से इतनी पीड़ित हो चुकी थी कि उन्हें लालू प्रसाद के सामने जो भी उम्मीदवार नजर आया बिहार की जनता ने उसे ही चुन लिया.


आजकल नीतीश कुमार एक निरकुंश शासक की तरह हैं जिन पर किसी का बस नहीं चलता है और जो स्वयं को हावी करके राजनीति का खेल खेलते हैं. नीतीश कुमार में मौके पर नजर रखने का गुण है जो किसी को भी कायल कर दे. वो मौका ही था जब नीतीश कुमार ने धर्म निरपेक्षता का कवच पहनकर बिहार की सत्ता संभाल ली फिर अपनी जातिवादी राजनीति का खेल उसी कवच के पीछे से खेलना शुरू कर दिया.


नीतीश कुमार मीडिया मैंनजमेंट का खेल अच्छे से जानते हैं और पूरी तरह कोशिश करते हैं कि उनकी जितनी भी खामियां हैं वो सब मीडिया मैंनजमेंट के पीछे छुप जाएं. बहुत बार बिहार में ऐसा हुआ है कि नीतीश कुमार की खामियां मीडिया मैंनजमेंट के कारण छुप गईं. पर अब नीतीश को समझना होगा कि उनकी सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला उन पर ही भारी पड़ने वाला है क्योंकि लगता है कि बिहार की जनता में आक्रोश पैदा हो गया है और आक्रोश का प्रहार कब हो जाए कोई नहीं जानता है.


Read:गठबंधनों के टूटने और बनने का संक्रमण काल


Tags: Nitish Kumar, Nitish Kumar Politics, Nitish kumar Caste politics, Nitish Kumar And Narendra Modi, Nitish Kumar and The Rise of Bihar, Nitish Kumar and BJP,नीतीश कुमार

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh