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भूमिहीन गरीबों को आश्वासन का अंतहीन सिलसिला

एक नेता के भाषण में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बात यह होती है कि वो सिर्फ आम जनता को आश्वासन दे सकता है और आश्वासन देने का सिलसिला तब तक चलता है जब तक कि राजनीति में वोट का सिलसिला चलता है. राजनीति में वोट के सिलसिले का ना तो अंत हुआ और ना ही ऐसी कोई उम्मीद है कि भारतीय राजनेता वोट के लिए नहीं जनता के लिए काम करेंगे. यह वाक्य तो ऐसा वाक्य बनकर रह गया जैसे कि बच्चों को बचपन में बोला जाता है कि परियां आती हैं. सत्ता में जब-जब जिसकी सरकार रही है तब-तब भूमिहीनों को आश्वासन  देकर राजनेता अपनी वोट की राजनीति करते आए हैं. राजनेताओं की वोट जुटाने की राजनीति में इतनी गंदगी भर चुकी है कि अब तो आम जनता को भी हैरानी होती है कि क्या यह वो ही राजनेता हैं जिन्हें हम चुनकर सत्ता में लाए हैं.


politicsआदिवासी, भूमिहीन गरीब, दलित लोग भूखे-प्यासे अपनी जमीन की रक्षा के लिए पद यात्रा पर उतर आए पर वो यह नहीं जानते कि उनकी पद यात्रा का सरकार पर कोई असर नहीं होगा. यह बात अलग है कि सरकार भूमिहीन गरीबों की बात सुनेगी और बदले में आश्वासन भी देगी पर वो आश्वासन सिर्फ तब तक होगा जब तक की सरकार 2014 के संसदीय चुनाव में अपने लिए वोट एकत्रित नहीं कर लेती है. ज़मीन का मालिकाना हक़ माँगने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से पदयात्रा करते हुए दिल्ली की ओर रवाना भूमिहीनों से केंद्र सरकार ने समझौता कर लिया लेकिन इस समझौते में आश्वासन ज़्यादा ठोस उपाय कम हैं. सरकार ने ज़्यादातर माँगों के बारे में कह दिया कि वो इस पर राज्य सरकारों से जल्दी ही बातचीत का सिलसिला शुरू करेगी और उन्हें भूमि संबंधी क़ानूनों को लागू करने के लिए तैयार करेगी. पर यह कोई नहीं जानता है कि सरकार कब तक भूमि संबंधी कानूनों को तैयार करेगी.

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केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भूमिहीन लोगों से वादे तो कर दिए पर वो यह भूल गए कि उनकी यूपीए सरकार ऐसे वादे ना जाने कितने जमाने से करती आ रही है. जयराम रमेश और उनकी यूपीए सरकार ने यह तय तो कर दिया कि जयराम रमेश के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा जो समझौते को लागू करने का काम करेगी पर वो यह भूल गए कि कुछ सालों पहले भी डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भूमिहीनों के लिए एक टास्क फोर्स तैयार करने का आश्वासन दिया गया था जो आज भी आश्वासन ही है. राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति, कृषि और आवासीय भूमि, भू-अधिकार, वन अधिकार कानून, टास्क फोर्स जैसे सभी आश्वासन जो जयराम रमेश ने भूमिहीन लोगों को दिए हैं ऐसे ही हजारों आश्वासन तब दिए गए थे जब कांग्रेस को सत्ता में आने के लिए आम जनता के वोटो की जरूरत थी.


याद होगा आपको वो समय जब उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाक़ों में भूमिहीनों की मात्रा हर रोज बढ़ती जा रही थी और सत्ता में बैठी सरकार विकास का नाम देकर राजनीति कर रही थी. भट्टा पारसौल गाँव की घटना तो सभी को याद होगी जब यूपीए गठबंधन के चहेते राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भट्टा पारसौल में किसानों की जमीन के हक के लिए लड़ रहे थे. उत्तर प्रदेश के चुनाव से पहले तो राहुल गांधी को किसानों की जमीन की याद नहीं आई थी. भूमिहीन किसानों, आदिवासियों, दलितों, गरीब भूमिहीन लोगों को यह समझना होगा कि सरकार उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ और नहीं देने वाली है……… यह सरकार के आश्वासन देने का सिलसिला 2014 के संसदीय चुनाव तक चलेगा और शायद 2014 के संसदीय चुनाव में जीत हासिल करने के बाद सरकार आश्वासन देना भी जरूरी ना समझे.

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