‘भारत का राष्ट्रपति होने के दौरान मुझे जो अनुभव हुए, वो दर्द और लाचारी से भरे हुए थे. ऐसे कई अवसर आए, जब मैं देश और जनता के लिए कुछ नहीं कर सका. इस तरह के अनुभव से मुझे बहुत दुख हुआ. इस वजह मुझे बहुत तनाव हुआ. मैं राष्ट्रपति की सीमित शक्तियां देखकर बहुत घुटन होती थी. वास्तव में बेबसी और ताकत एक साथ होना, एक अजीब बात है.’
बहुत कम लोग अपने क्षेत्र की चुनौतियों और परेशानियों के बारे में खुलकर बोलते हैं. भारत के 10वें राष्ट्रपति कोचेरिल रमण नारायण यानि केआर नारायण भी उन लोगों में से एक थे. अपनी बेबाकी की वजह से केआर नारायण को आज भी याद किया जाता है.
झोपड़ी में रहते थे, फीस भरने तक के नहीं थे पैसे
केआर नारायण अपने 7 भाई-बहनों में चौथी संतान थे. उनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके पिता आयुर्वेद चिकित्सा करते थे और उनकी माता नारियल तोड़ने का काम करती थीं. झोपड़ी में रहते हुए उनके पास मूलभूत जरूरतों को पूरा करने तक के साधन नहीं थे. बचपन से केआर को पढ़ने का बहुत शौक था, लेकिन स्कूल की फीस के लिए पैसे नहीं होते थे, जिस वजह से उन्हें घंटो क्लास में खड़ा रहना पड़ता था.
स्कूल जाने के लिए उन्हें रोज धान के खेतों के बीच से जाना पड़ता था और इसके अलावा स्कूल पहुंचने के लिए 15 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ता था.
महात्मा गांधी का लिया था इंटरव्यू
उन्हें त्रावणकोर के शाही परिवारों से छात्रवृत्ति भी मिलती थी. जैसे-तैसे कला में ग्रेजुएट और अंग्रेजी साहित्य से पोस्ट ग्रेजुएट की परीक्षा पास करके दिल्ली आ गए. वहां उन्होंने कुछ समय तक जर्नलिस्ट के तौर पर ‘द हिन्दू’ और ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया में काम किया. इसी दौरान उन्होंने एक बार महात्मा गांधी का इंटरव्यू भी लिया. नारायण इसके बाद इंग्लैंड चले गए, वहां पर उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की.
तीन बार दर्ज की जीत
इंदिरा गांधी के कहने पर केआर नारायण ने तीन बार (1984, 1989 और 1991) लोकसभा का चुनाव लड़ा और हर बार जीत दर्ज की…Next
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