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चुनाव के बाद केजरीवाल के ये चार फैसले बनेंगे मोदी के खिलाफ सबसे बड़े हथियार

ये अरविंद केजरीवाल द्वारा दिल्ली जीत के बाद लिए गए वे तीन फैसले हैं जिनमें उनके भविष्य की राजनीति का रास्ता झलकता है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की पकड़ भले ही आज बेहद मजबूत दिख रही हो पर उन्होंने केजरीवाल की इस रणनीति पर समय रहते ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में केजरीवाल मोदी को फिर से  सीधे टक्कर देते हुए नजर आएंगे और इस बार उनकी स्थिति भी काफी मजबूत होगी. गौरतलब है कि शुरू से ही केजरीवाल खुद को मोदी के प्रतिद्वंदी के रूप में खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं. उनकी कोशिश अपनी सार्वजनिक छवि मोदी की छवि से ठीक विपरीत गढ़ने की है. अब उनके इन फैसलों पे जरा नजर तो डालिए


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1) जीत के तुरंत बाद वे अपनी पत्नी के साथ मीडिया के सामने नजर आएं-

लोकसभा चुनाव से पहले ही यह बात सार्वजनिक हो चली थी कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अविवाहित नहीं हैं. राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने से पहले ही उनकी शादी हो चुकी थी पर उन्होंने शादी के कुछ दिन बाद ही अपनी पत्नी को त्याग दिया था. करीब तेरह साल तक नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे पर उनकी पत्नी जशोदाबेन एक गुमनाम स्कूल की अध्यापिका बनी रहीं. जशोदाबेन अब रिटायर हो चुकी हैं पर उन्हें इंतजार है अपने पति और देश के प्रधानमंत्री से एक मुलाकात का.


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केजरीवाल अबतक अपने सार्वजनिक जीवन से अपनी आईआरएस पत्नी सुनीता केजरीवाल को दूर रखे हुए थे पर दिल्ली में अप्रत्याशित फतह के बाद मीडिया में हर जगह केजरीवाल और उनकी पत्नी की वह तस्वीर चलने लगी जिसमें वे आनंद विभोर होकर सुनीता को आलिंगन में भरे हुए हैं. इस तस्वीर के साथ केजरीवाल ने अपनी पत्नी को धन्यवाद देते हुए ट्वीट किया, “धन्यवाद सुनीता, हमेशा मेरे साथ खड़े रहने के लिए.” क्या आपको लगता है कि केजरीवाल और उनकी पत्नी की यह तस्वीर और उनका ट्वीट अनायास है. मोदी जी ध्यान दीजिए.


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2) भाजपा विधायक को नेता विपक्ष का पद देने की घोषणा

नियमानुसार नेता विपक्ष के पद के लिए संबंधित पार्टी को कुल सीटों का कम से कम 10 प्रतिशत सीट जीतनी होती है. अगर केजरीवाल चाहते तो 70 में से मात्र 3 सीट जीतने वाली भाजपा को नेता विपक्ष का पद देने से इंकार कर सकते थे.  पर केजरीवाल ने उदारता दिखाते हुए उस भाजपा को दिल्ली विधानसभा में नेता विपक्ष चुनने के लिए आमंत्रित किया गया जो खुद संसद में कांग्रेस के प्रति यह उदारता दिखाने से चूक गई है. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में दूसरी सबसे बडी पार्टी कांग्रेस को मात्र 44 सीटें प्राप्त हुई थी जिसके बाद भाजपा ने उसे नेता विपक्ष का पद देने से इंकार कर दिया था. केजरीवाल की यह उदारता भाजपा के अहम को चोट तो करेगी ही.


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3) शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी को दिया निमंत्रण

केजरीवाल के इस कदम का मीडिया में चर्चा पाना लाजमी तो था ही. उनका यह फैसला इस लिहाज से और महत्वपूर्ण हो जाता है कि कुछ दिन पहले ही गणतंत्र दिवस समारोह में केंद्र की भाजपा सरकार ने आम आदमी पार्टी के नेता को निमंत्रण भेजना गैरजरूरी समझा था.

मोदी के अलावा केजरीवाल ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह, शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू, भाजपा नेता किरण बेदी, कांग्रेस नेता अजय माकन और दिल्ली के सातों भाजपा सांसदों को इस समारोह में आमंत्रित किया है. मोदी ने इस समारोह में पूर्व निर्धारित व्यस्तता का हवाला देकर आने से इंकार कर दिया है पर केजरीवाल के इस निमंत्रण ने एक बार तो उन्हें दुविधा में डाल ही दिया होगा.


4) 14 फरवरी को शपथ ग्रहण समारोह

केजरीवाल ने शपथ ग्रहण समारोह के लिए इस दिन का ही चुनाव क्यों किया. इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि अगले दिन यानी 15 फरवरी को क्रिकेट विश्व कप में भारत और पाकिस्तान की टीमें एक दूसरे से भिडेंगी इसलिए वीकेंड का लाभ लेते हुए समारोह में भींड जुटाने के लिए शनिवार यानी 14 फरवरी का दिन ही मुफिद था.


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खैर कुछ लोग यह भी तर्क दे रहे हैं कि वेलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी को शपथ ग्रहण करके केजरीवाल भाजपा को मुंह चिढ़ा रहे हैं. उस भाजपा को जिसकी जड़े संघ परिवार से जुड़ी हुई है. उस संघ परिवार से जो वेलेंटाइन डे को विदेशी त्योहार मानता है और इसका घोर विरोधी है.

कई प्रेमी युगल यह सोच रहे हैं कि इस वेलेंटाइन डे को ऐतिहासिक बनाने के लिए 14 फरवरी के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान से बेहतर स्थान कुछ नहीं हो सकता. यह युवावर्ग भारत में आने वाले कई चुनावों में राजनीति के भाग्य विधाता बने रहने वाले हैं और इन्हें आकर्षित करना किसी भी पार्टी के लिय सबसे बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगी. Next…


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