एक साल पहले से ही अगले लोकसभा चुनावों के लिए पार्टियों की चुनावी हलचल शुरू हो जाती है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी यह परंपरा बनी रही. 2013 में बेतहाशा बढ़ती महंगाई, खासतौर पर प्याज-टमाटर की बढ़ी हुई कीमतों को काबू में न कर पाने के लिए सरकार की गलत नीतियों को निशाना बनाते हुए विपक्ष से यह रणनीति शुरू हो चुकी थी. सत्तापक्ष यूपीए भी विपक्ष द्वारा सरकार की नाकामी और गलत नीतियों के संदेश को समझते हुए अपने पक्ष में तमाम कारण बताते हुए इसमें शामिल रही. रुपए के गिरने से लेकर अनाज के दामों और एफडीआई के लागू होने तक हर पक्ष-विपक्ष के बयान में लोकसभा चुनावों की रणनीति साफ दिखाई पड़ रही थी. लेकिन 2014 का लोकसभा चुनाव कई मामलों में खास है. यह अब तक का पहला चुनाव है जब चुनाव से ठीक पहले रिकॉर्ड मतदाता पहचान पत्र बने. इस चुनाव में अब तक सबसे ज्यादा संख्या में भाग लेने वाले मतदाता शामिल हैं जिनमें युवाओं की संख्या भी अब तक के सभी आम चुनावों में सबसे ज्यादा हैं. यहां हम आपको 2014 के चुनावी अभियान की खास बातों से रूबरू करा रहे हैं:
1. मीडिया और सोशल मीडिया पर भाजपा केंद्र में आई
-सितंबर 2013 में भाजपा के पीएम पद के प्रत्याशी की घोषणा के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अचानक मीडिया से लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय दिखने लगीं.
-इसके साथ ही आडवाणी के बजाय नरेंद्र मोदी को भाजपा का ‘पीएम इन वेटिंग’ बनाना पार्टी के ही कई वरिष्ठ नेताओं को नागवार गुजरा और भाजपा में अंदरूनी कलह बाहर आई.
-ऑफिशियल ‘पीएम कैंडिडेट’ के रूप में मोदी की घोषणा पर आडवाणी ने अपनी नाराजगी जताई, घोषणा में नहीं आए.
2. चुनावी अभियान में पहली बार हुआ व्यक्तिगत छींटाकशी
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनते ही मोदी का चुनावी अभियान भी शुरू हो गया. इस बार के चुनाव प्रचार सभाओं और रैलियों में व्यक्तिगत छींटाकशी खास तौर पर देखने को मिली. पार्टियों द्वारा इलेक्शन कमीशन से शिकायत भी इसमें शामिल रहा. देखिए उसकी एक झलक:
– खूनी पंजा पर बवाल: नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली में कांग्रेस को खूनी पंजा कहकर संबोधित किया, कांग्रेस ने इस पर खूब बवाल किया और व्यक्तिगत छवि को हानि पहुंचाने वाला संबोधन बताकर इलेक्शन कमीशन से शिकायत की.
– राहुल गांधी को शहजादा कहकर बुलाना और कांग्रेस की इस पर नाराजगी मीडिया में व्यंग्यात्मक चर्चा का विषय रहा: नरेंद्र मोदी द्वारा राहुल गांधी को प्रतीकात्मक तौर पर शहजादा कहकर संबोधित कहने पर कांग्रेस के नेताओं और सोनिया गांधी के बयानों में कई बार किसी और बात पर कटाक्ष के रूप में नाराजगी नजर आई.
-राहुल गांधी का पहली बार मीडिया में लंबा इंटरव्यू देना: जब से राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष और युवा कांग्रेस के नेता बने हैं तब से कभी भी बतौर नेता उन्होंने किसी पत्रकार को व्यक्तिगत इंटरव्यू नहीं दिया. पहली बार सीएनएन पर उनका लंबा इंटरव्यू आया और इसने खूब मीडिया कवरेज बटोरी. इस इंटरव्यू में राहुल के जवाबों के लिए उनकी खूब किरकिरी भी हुई.
-राहुल रोए, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को दादी और पापा कहकर कई रैलियों में भाषण दिया: एक रैली में तो इंदिरा और राजीव गांधी की हत्याओं की बात करते हुए उनकी आंखों में आंसू भी आए. विपक्ष ने इस पर उन्हें आड़े हाथों लिया. हर तरफ राहुल गांधी के इस भाषण पर उन्हें साफ तौर से अपरिपक्व और व्यंग्यात्मक रूप से बच्चा कहकर खिल्ली उड़ी.
-हर-हर मोदी पर विवाद: बनारस सीट से मोदी के लड़ने की घोषणा होने के बाद बनारस अचानक राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गया. बनारस में मोदी समर्थकों के ‘हर-हर मोदी’ के नारे देने पर खूब बवाल हुआ.
-एक चुनावी रैली के अपने भाषण में केजरीवाल ने ‘मोदी वेव’ को सीधे-सीधे गलत बताया. उन्होंने कहा कि वेव तो है लेकिन मोदी वेव कहीं नजर नहीं आता.
-अरविंद केजरीवाल ने मोदी और राहुल गांधी को अपने खिलाफ लड़कर जीतने के लिए ललकारा.
प्रियंका गांधी और मोदी का वाकयुद्ध: चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी एक बार फिर भाई और मां के प्रचार में उतरीं. प्रियंका ने मोदी पर सीधा-सीधा कटाक्ष किया जिसका प्रत्युत्तर भी मोदी ने फिर कटाक्ष के अंदाज में ही दिया. यह वाक-वार भी मीडिया की सुर्खियों में रहा.
6. न्यूज चैनलों के गलत पोलिंग रिपोर्ट पर बवाल: दिसंबर में चार राज्यों का विधानसभा चुनाव प्रचार भी लोकसभा चुनाव प्रचार का एक हिस्सा रहा. दिल्ली चुनाव के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने एक मीडिया के चुनावी सर्वे को झूठा और अपनी व्यक्तिगत पार्टी सर्वे को सही बताने पर चैनल और केजरीवाल का विवाद भी मीडिया में खूब छाया.
पब्लिक रिलेशन का बहुतेरा उपयोग: पक्ष-विपक्ष दोनों ही पार्टियों द्वारा किसी न किसी रिपोर्ट में अपने नेताओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी जगह बड़ी उपलब्धि वाला या श्रेष्ठ दिखाए जाने की रणनीति इस बार खूब चली. अचानक कभी सोनिया सबसे पॉपुलर और एशिया की सबसे मजबूत महिला के रूप में किसी पत्रिका की रिपोर्ट में नजर आईं तो कभी नरेंद्र मोदी. इसमें नकारात्मक छवि बनाने की विपक्ष की कोशिश के विवाद भी सामने आए. सोनिया गांधी का एशिया की सबसे धनी धनी महिला और करोड़पति होने की एक पत्रिका के रिपोर्ट पर कांग्रेस ने खासा बवाल किया. चुनाव से ठीक पहले लगातार ऐसे नतीजे आने के पीछे के कारण और उसके प्रभावों पर खूब चर्चा हुई. चुनावी महीनों में नरेंद्र मोदी पर कई किताबें छपना मीडिया में प्रचार का तरीका माना गया और चर्चा में रहा.
3. दिसंबर में दिल्ली समेत चार विधानसभाओं के नतीजों के आधार पर लोकसभा चुनाव के नतीजों का आंकलन: दिल्ली में भाजपा का पूर्ण बहुमत न जुटाना और आप का दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने से लोकसभा चुनावों में भाजपा के बहुमत न जुटा पाने के अंदेशे के रूप में देखा जा रहा था.मोदी के पीएम इन वेटिंग बनते ही भाजपा में हर तरफ मोदी की लोकसभा कैंपेनिंग बढ़ गई. फेसबुक और ट्विटर जैसी साइटों पर हर ओर युवाओं में मोदी के पक्ष में लहर साफ देख रही थी. भाजपा के पक्ष में इसका पहला असर दिसंबर में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में ही देखने की उम्मीद की जा रही थी. बावजूद इसके भाजपा 32 सीटें ही जीत सकी और मात्र 3 माह पुरानी पार्टी अरविंद केजरीवाल की ‘आप पार्टी’ ने 28 सीटें जीतकर कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बना ली. भाजपा और ‘मोदी की लहर’ के कारण अप्रैल 2014 के लोकसभा चुनावों के नतीजों के लिए यह नकारात्मक असर देने वाला माना जाते हुए मीडिया में बड़ी चर्चा का विषय बना.
4. सीटों का बंटवारा विवाद: चुनावी टिकट पर पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में असंतोष के कारण अंदरूनी कलह बाहर आई:
भाजपा –
-आडवाणी को गांधीनगर से सीट न मिलने पर सुषमा स्वराज तथा अन्य सीनियर नेताओं का विरोध
–शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब की सीट न मिलने की कयास सामने आने से विवाद
-कांग्रेस के कई नेताओं को भाजपा में शामिल करने और कई महत्त्वपूर्ण लोगों की परंपरागत विधानसभा सीटें उन्हें देने का विवाद.
5. पहली बार डायरेक्ट सीट-वार दिखी: अमेठी में राहुलगांधी के खिलाफ कुमार विश्वास को खड़ा करने के आप के फैसले और राहुल गांधी के अपने संसदीय क्षेत्र में विकासात्मक कामों को लेकर कुमार विश्वास के विवादित बयानों ने समाचारों की सुर्खियां तो बटोरी ही, इसके साथ ही पहली बार भाजपा, आप और कांग्रेस में संसदीय सीट पर पार्टी की बजाय प्रत्याशी वार सामने आया.
6. आप और अरविंद केजरीवाल
इस पूरे लोकसभा चुनावी माहौल में आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल किसी न किसी रूप में मीडिया में बहस का विषय बनते रहे. कभी केजरीवाल और उसके नेताओं पर काली स्याही फेंके जाने पर, तो कभी आप के नेताओं को पीटे जाने पर, कभी केजरीवाल के गंगा में नहाने पर तो कभी सभी पार्टियों को भ्रष्ट बताने पर ये हमेशा मीडिया और समाचारों के केंद्र में बने रहे.
7. सोशल मीडिया, चुनावी नारे और विज्ञापनों का उपयोग: अरविंद केजरीवाल के बाद नरेंद्र मोदी समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग भाजपा और नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार में धड़ल्ले से किया जाना मीडिया में बहस का विषय रहा. सोशल मीडिया यूजर्स युवाओं के राजनीतिक मुद्दों पर इतनी अधिक सक्रियता का कारण और 2014 के आम चुनाव में इसके परिणामों पर लगातार चर्चा होती रही.
2014 के लोकसभा चुनावी में अगर सबसे ज्यादा कुछ पॉपुलर रहा है तो वह है ‘चुनावी नारे और विज्ञापन’. पहली बार इस चुनाव में न सिर्फ अपनी पार्टी के प्रचार में बल्कि विपक्षी पार्टियों पर व्यंग्यात्मक विज्ञापन भी बनाए गए. राहुल को लॉलीपॉप खाते हुए दिखाते हुए एक अपरिपक्व नेता बताता ‘डांग्रेस विज्ञापन वीडियो’ यूट्यूब और सोशल मीडिया पर खूब पॉपुलर हुआ. इसके जवाब में मोदी पर व्यंग्यात्मक वीडियो भी उतना ही पॉपुलर हुआ. नारों में भी यह जवाबी रूप दिखा. कुछ पॉपुलर नारे:
कांग्रेस
“ना ब्रह्मज्ञानी, ना अभिमानी
आपके जैसे साधारण हिंदुस्तानी.”
“ना दहाड़ें, ना चिल्लाएं, ना जुमलों में मजाक उड़ाएं.”
“हमारे जैसे संस्कार, करो हर जाति-धर्म से प्यार.”
“सबको लेकर साथ, करें देश से प्यार”
भाजपा
“बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदी सरकार.”
“बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार.”
8. मोदी की चुनावी रैलियों में एलसीडी लगाए जाने और ई-बुकिंग: ‘पीएम इन वेटिंग’ बनते ही मोदी ने बिहार के भाजपा नेताओं से खास राष्ट्रीय कांफ्रेंस पर बात की. इसके बाद से पूरे चुनावों के दौरान मोदी की टेक्नो-प्रिय चुनावी रैलियां पर भी मीडिया में बहस होती रही. बिहार और बंगाल में मोदी की रैलियों में एलसीडी स्क्रीन लगाए जाने और रैली में आने के लिए ऑनलाइन बुकिंग कराया जाना खूब चर्चित रहा.
इलेक्शन कमीशन के एक्शन, शुरुआत भी भाजपा और अंत भी भाजपा: इलेक्शन कमीशन भी अपने अधिकारों और कामों के लिए इस बार चर्चित रहा. पश्चिम बंगाल में एक पोल बूथ से किसी की शिकायत पर ममता के कथित समर्थक पुलिसकर्मियों का तबादला करने पर ममता बनर्जी ने भी खूब हंगामा किया और यह न्यूज का बड़ा हिस्सा रहा.
हाल में इलेक्शन से पहले बनारस में मोदी की चुनावी रैली निकालने से रोक लगाने पर भाजपा नेताओं ने खासा हंगामा किया और इसकी अनुमति न देने के लिए इलेक्शन कमीशन पर सत्ताक्ष के दवाब में फैसला देने का आरोप लगाते हुए धरने पर भी बैठे. बात यहां तक पहुंची कि इलेक्शन कमीशन ने चुनावी नियमों में चुनाव से ठीक पहले प्रेस से बात न करने की नियम में इस घटना के आपातकालीन होने का बताकर प्रेस को बुलाकर सफाई तक दे दी.
Read Comments