एक ऐसा लड़का जिसे लिखने से प्रेम था और संगीत भी उसे खूब भाता था। वो खाली समय में सितार बजाते थे लेकिन उनके पिता को उनके ये शौक समय की बर्बादी लगते थे इस वजह से उनसे नाराज रहते थे। इन सब बातों ने उस लड़के को विद्रोही बना दिया। धीरे-धीरे ईश्वर से भी विश्वास उठ गया। ये कहानी है भारत के पहले शिक्षामंत्री रह चुके अबुल कलाम आजाद के बचपन की। आज के दिन वो दुनिया को अलविदा कह गए थे। जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें।
13 साल की उम्र में हुई थी शादी
मौलाना आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उनका असल नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन अहमद था लेकिन वह मौलाना आजाद के नाम से मशहूर हुए। मौलाना आजाद स्वतंत्रता संग्राम के अहम लीडरों में से एक थे। वह लीडर के साथ-साथ पत्रकार और लेखक भी थे। उनके पिता का नाम मौलाना सैयद मोहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अलहुसैनी था। उनके पिता एक विद्वान थे जिन्होंने 12 किताबें लिखी थीं और उनके सैकड़ों शागिर्द (शिष्य) थे। कहा जाता है कि वे इमाम हुसैन के वंश से थे। उनकी मां का नाम शेख आलिया बिंते मोहम्मद था जो शेख मोहम्मद बिन जहर अलवत्र की बेटी थीं। साल 1890 में उनका परिवार मक्का से कलकत्ता शिफ्ट हो गया था। 13 साल की उम्र में उनकी शादी खदीजा बेगम से हो गई।
कई भाषाओं के ज्ञानी अपनी उम्र के दुगुने लड़कों को पढ़ाते थे
आजाद ने अपने परिवार की संस्कृति के मुताबिक पांपरिक इस्लामी शिक्षा हासिल की। पहले उनको घर पर पढ़ाया गया और बाद में उनके पिता ने पढ़ाया। फिर उनके लिए शिक्षक रखे गए। आजाद का संबंध एक धार्मिक परिवार से था इसलिए शुरुआत में उन्होंने इस्लामी विषयों का ही अध्ययन किया। उन्होंने कई भाषाओं जैसे उर्दू, हिंदी, फारसी, बंगाली, अरबी और इंग्लिश पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई। उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र, इतिहास और समकालीन राजनीतिक का भी अध्य्यन किया। उन्होंने अफगानिस्तान, इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की जैसे देशों का सफर किया। पढ़ाई के दिनों में वह काफी प्रतिभाशाली और मजबूत इरादे वाले छात्र थे। अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने अपना पुस्तकालय चलाना शुरू कर दिया, एक डिबेटिंग सोसायटी खोला और अपनी उम्र से दोगुने उम्र के छात्रों को पढ़ाया। 16 साल की उम्र में उन्होंने सभी परंपरागत विषयों का अध्ययन पूरा कर लिया था।
पाकिस्तान निर्माण के खिलाफ थे अबुल
अरब की यात्रा से आने के बाद कलाम की देश के प्रमुख हिंदू क्रांतिकारियों जैसे श्री औरबिंदो घोष और श्याम सुंदर चक्रवर्ती से मुलाकात हुई। इसके बाद उन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। कलाम की यह कोशिश उन मुस्लिम राजनीतिज्ञों को पसंद नहीं आई जिनका झुकाव सांप्रदायिक मुद्दों की तरफ था। वे लोग कलाम की आलोचना करने लगे। इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के दो राष्ट्रों के सिद्धांत को भी उन्होंने खारिज कर दिया था यानी वह उन पहले मुस्लिमों में शामिल थे जिन्होंने धर्म के आधार पर एक अलग देश पाकिस्तान के निर्माण के प्रस्ताव को खारिज किया था। उन्होंने उन मुस्लिम राजनीतिज्ञों को राष्ट्र हित की क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने की अपील की।…Next
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