भारत की राजनीति पूरी तरह से गठबंधन पर आधारित है. भारत में ऐसा बहुत कम ही बार हुआ है जब किसी सरकार ने पूर्ण तौर पर अपनी बहुमत से सरकार बनाई है. भारतीय राजनीति की यह एक विशेषता रही है. पिछले कई सालों से यह राजनीति का एक ऐसा कारक है जो किसी भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए चिंता का विषय रहा है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो यह जोड़-तोड़ की राजनीति है. इस जोड़-तोड़ की राजनीति का लक्ष्य कुछ नहीं होता है होती है तो मात्र सत्ता.
गठबंधन की अहमियत(Importance Of Alliance): भारत जैसे देश में आखिर क्यों जरूरी है गठबंधन की राजनीति. क्या यह देश के सबसे बड़े लोकतंत्र की जरूरत है या इसकी मजबूरी? एक प्रश्न यह भी उठता है कि गठबंधन की राजनीति लोकतंत्र के हित में होती है या इससे लोकतंत्र और भी ज्यादा कमजोर होता है? जहां अधिकांश गठबंधन सरकारों में देखा गया है कि वह बस औपचारिक तौर पर सत्ता में रहने के लिए राजनीति करती हैं, इसका ना तो जनता को फायदा पहुंचता है और ना ही कोई भी प्रत्यक्ष रूप से देश को फायदा पहुंचता है. राजनीति का यह उपक्रम सही मायने में कभी काम नहीं कर पाता है.
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गठबंधन से आशाएं (Alliance In India) : गठबंधन सरकार से यह आशा कभी नहीं की जा सकती है कि वो सही तरीके से राजनीति कर एक बेहतर परिस्थिति में देश को ले जाए. छोटे प्रादेशिक पार्टियों का उत्थान ही गठबंधन सत्ता के बनने में पूर्ण रूप से जिम्मेदार है. यह अधिकांश पार्टियां या तो जातिवाद से जन्मी हैं या फिर कोई ऐसे कारण से उनकी उत्पति हुई है जिसका मुख्य लक्ष्य मात्र सत्ता में रहना ही है. यह सत्ता को बदलने के लिए नहीं आती हैं बल्कि उसमें अपनी भागीदारी लेना ही इनका लक्ष्य होता है.
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