जंतर-मंतर पर हजारों की भीड़ खड़ी थी…जो भ्रष्टाचार से पीड़ित थी और भ्रष्टाचारी सरकार से निजात पाने के लिए कोई रास्ता तलाश रही थी. रास्ता मिल भी गया और वो था अन्ना हजारे का अनशन जो भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जनलोकपाल बिल की मांग कर रहा था.अन्ना हजारे(Anna Hazare ) के अनशन को भारतवासियों का साथ भी मिला क्योंकि अन्ना की छवि एक सामाजिक कार्यकर्ता की थी जिन्होंने रालेगन सिद्धि में वहां के लोगों की सुख-सुविधा के लिए अनशन किया, महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और सूचना का अधिकार आंदोलन के लिए सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में लड़ाई लड़ी. अन्ना हजारे(Anna Hazare) की टीम का यही मानना था कि जनलोकपाल बिल की लड़ाई का नेतृत्व अन्ना हजारे(Anna Hazare)ही करेंगे और यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक सरकार जनलोकपाल बिल को पास नहीं कर देती है.
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अन्ना हजारे(Anna Hazare)का अनशन जारी रहा पर इस बात का अहसास भी होने लगा कि अन्ना टीम ज्यादा समय तक जनलोकपाल बिल की लड़ाई को एक साथ नहीं लड़ पाएगी. राजनीति की समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि अन्ना हजारे की टीम में जो सदस्य थे उनकी मंशा शुरुआत से ही राजनीति में आने की रही थी. अन्ना हजारे(Anna Haza) के अनशन में जो भारतवासी अन्ना टीम का समर्थन कर रहे थे उन्हें अचानक झटका लगा कि अब अन्ना हजारे की टीम अनशन के रास्ते पर भ्रष्टाचार की लड़ाई नहीं लड़ेगी बल्कि एक राजनीतिक पार्टी बनाकर मैदान में उतरेगी. राजनीति पार्टी के एलान के शुरुआती समय में अन्ना हजारे ने यह बात तो साफ नहीं की थी कि वो राजनीतिक पार्टी का समर्थन करेंगे या नहीं? पर अन्ना हजारे(Anna Hazare)ने अरविंद केजरीवाल को अपनी दुआ जरूर दी थी. पर अचानक अन्ना हजारे यह एलान करते हुए नजर आए कि वह जनलोकपाल की लड़ाई केवल अनशन या सामाजिक आन्दोलन के जरिए लड़ेंगे तथा वो किसी प्रकार की राजनीतिक पार्टी का समर्थन नहीं करेंगे. पर अन्ना हजारे के यह बात कहने से इतनी हैरानी नहीं हुई जितनी हैरानी इस बात से हुई कि जब अन्ना हजारे(Anna Hazare ) ने कहा कि अरविंद केजरीवाल अन्ना नाम का प्रयोग अपनी राजनीतिक पार्टी के प्रचार में नहीं करेंगे. शायद अन्ना हजारे(Anna Hazare ) को यह लगने लगा था कि जनलोकपाल बिल की लड़ाई में अन्ना हजारे के नाम का अस्तित्व गुम होता नजर आ रहा है.
आज वर्तमान स्थिति यह है कि भले ही अन्ना हजारे(Anna Hazare )और केजरीवाल (Arvind Kejriwal)इस बात से इंकार कर रहे हैं कि दोनों के बीच कोई दूरी नहीं है बल्कि केवल रास्ते अलग-अलग हुए हैं और मंजिल एक ही है. पर वास्तविक सच्चाई तो यह है कि मंजिल का तो पता नहीं पर दोनों के रास्तों के साथ-साथ अब जनलोकपाल बिल की लड़ाई के अस्तिव को बचाए रखने की जद्दोजहद नजर आती है. अरविंद केजरीवाल ने जब कुछ समय पहले अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की तो एक बड़ा बदलाव नजर आया जो यह था कि अन्ना हजारे(Anna Hazare ) की टोपी अब आम आदमी की टोपी बन चुकी थी. शायद अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal) आम आदमी की टोपी दिखाकर यह दर्शाने की कोशिश में लगे हैं कि उनकी पार्टी आम आदमी की पार्टी होगी पर सवाल यह है कि क्या अरविंद केजरीवाल भावनाओं से लोगों का दिल जीत पाएंगे?
अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal)ने यह कह तो दिया कि ‘यह मेरी पार्टी नहीं है. यह आपकी पार्टी है. यह इस देश के लोगों की पार्टीहै. राजनीतिक दल का मकसद जनता का प्रत्यक्ष शासन, भ्रष्टाचार से लड़ाई वमूल्य वृद्धि रोकना होगा’. पर सवाल यह है कि लोग इस तरह के भाषण सुनने के आदी हो चुके हैं. तो क्या ऐसा होगा कि लोगों को यह लगने लगेगा कि सच में अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी की पार्टी है. 2014 के संसदीय चुनाव में केजरीवाल एण्ड टीम जीतने के लिए हर संभव प्रयास करती हुई नजर आएगी पर क्या अन्ना हजारे के नाम का प्रयोग किए बिना अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal)दुबारा उन भारतवासियों का भरोसा जीत पाएंगे जिन्होंने जंतर-मंतर पर अन्ना टीम का समर्थन किया था.
पर इन्हीं सवालों के साथ विचार विमर्श का यह सिलसिला समाप्त नहीं हो सकता है क्योंकि अरविंद केजरीवाल द्वारा राजनीतिक पार्टी बनाने से ज्यादा विचार करने का विषय यह है कि क्या अन्ना हजारे के नाम को प्रयोग किए बिना अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal)की पार्टी चल पाएगी और जनलोकपाल बिल किस रास्ते से पास हो सकेगा – अन्ना हजारे का रास्ता या फिर अरविंद केजरीवाल का रास्ता?
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