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महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह की वजह से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने छोड़ दी थी वकालत

आज सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है, इस खास दिन पर पीएम मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया। उनकी 143वीं जयंती इस वजह से हमेशा याद की जाएगी। इसके अलावा राजनीति के गलियारों में ‘लौह पुरूष’ से जुड़े हुए कई किस्से हैं।  आइए, जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ खास पहलुओं के बारे में।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal31 Oct, 2018

 

 

16 साल की उम्र में शादी और वकालत करने के लिए चले गए पटेल
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में नाडियाड गुजरात में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे। सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया। 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली।

 

 

चम्पारण सत्याग्रह की वजह से वकालत छोड़ दी
सरदार पटेल एक कामयाब वकील थे और उन्होंने अपने बेटे और बेटी को अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दिलवाई थी। पत्नी के असामयिक निधन के बाद दोनों संतानों को मुंबई में अंग्रेज़ गवर्नेस के पास छोड़कर वल्लभभाई पटेल बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। वहां से लौटने के बाद उनकी वकालत बहुत अच्छी चमक गई थी। लेकिन महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह ने उन्हें सोचने को मजबूर कर दिया और इससे सरदार के जीवन की दिशा बदल गई।
धीरे-धीरे वो गांधी से जुड़े और आंदोलन में जी-जान से लग गए।

 

 

क्या था चम्पारण सत्याग्रह
यह वह दौर था जब गांधी अफ्रीका से लौटने के बाद देश को करीब से जानने के लिए देशाटन पर थे और इसी कड़ी में राज कुमार शुक्ला के निमंत्रण पर वह 10 अप्रैल 1917 को बिहार के चम्पारण पहुंचे। चंपारण सत्याग्रह गांधी के नेतृत्व में भारत का पहला सत्याग्रह आंदोलन था।
उस समय अंग्रेजों के नियम-कानून के चलते किसानों को खाद्यान्न के बजाय अपनी जोत के एक हिस्से पर मजबूरन नील की खेती करनी होती था। इसके चलते किसान अंग्रेजों के साथ-साथ अपने भू-मालिकों के जुल्म सहने को भी मजबूर थे। ऐसे माहौल में जब गांधी चम्पारण पहुंचे तो लोग उन्हें अपना दुख-दर्द बताने पहुंच गए। गांधी ने अपने कुछ जानकार मित्रों और सलाहकारों से गांवों का सर्वेक्षण कराकर किसानों की हालात जानने की कोशिश करते रहे और फिर उन्हें जागरूक करने में जुट गए। उन्होंने लोगों को साफ-सफाई से रहने और शिक्षा का महत्व बताया था।

 

 

चम्पारण सत्याग्रह के बाद हुए कई आंदोलन
गांधी की बढ़ती लोकप्रियता पुलिस को नागवार गुजरी और उन्हें समाज में असंतोष फैलाने का आरोप लगाकर चंपारण छोड़ने का आदेश दिया लेकिन सत्याग्रह के अपने प्रयोग से गुजर रहे गांधी ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। अदालत में सुनवाई के दौरान गांधी के प्रति व्यापक जन समर्थन को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने उन्हें बिना जमानत छोड़ने का आदेश दे दिया, लेकिन गांधी अपने लिए कानून अनुसार उचित सजा की मांग करते रहे। इसी के तुरंत बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में एक और बड़ा सत्याग्रह खड़ा हुआ। इसके बाद गांधी को असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी इसी तरह का समर्थन देखने को मिला और दांडी यात्रा में पूरा देश एक होकर अंग्रेजों के खिलाफ उतर गया…Next 

 

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