देश और राज्य का कानून उसके सही संचालन के लिए बनाया जाता है. कानून के द्वारा एक व्यवस्थित प्रक्रिया के साथ राज्य और देश के हित में कार्य संचालन किए जाते हैं. इसका आखिरी और एकमात्र मकसद देश और राज्य का हित है जिसके मूल में उस देश और राज्य के निवसियों का हित होता है. लेकिन जब कोई व्यवस्था किसी के हित में भी न हो और देश और राज्य की एकता और अखंडता को भी खंडित करती हो तो ऐसी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगना बेवजह नहीं हो सकता. लोकतंत्र में देश के मूल में व्यवस्था संचालन के लिए राज्यों का निर्माण किया गया है लेकिन किसी भी राज्य का हित उसके देशहित से अलग नहीं हो सकता. अगर ऐसी कोई व्यवस्था होती है तो वास्तव में देश की एकता और अखंडता को विभाजित करने वाली व्यवस्था है और देशहित में ऐसी व्यवस्था को हटाना ही बेहतर माना जाएगा.
आर्टिकल 370 जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है आज फिर बहस का विषय है. भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद का मुद्दा जम्मू-कश्मीर इस आर्टिकल के द्वारा अपना हर नियम-कानून खुद बनाने के लिए आजाद है. इसके साथ ही भारतीय संविधान के अंतर्गत आने वाले नियम-कानूनों से यह मुक्त हो जाता है. 1947 में जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के द्वारा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री घोषित किए गए शेख अब्दुल्ला द्वारा ड्राफ्ट किया गया यह आर्टिकल भारतीय लोकतंत्र के लिए आज भी विवाद से ज्यादा इसकी सत्ता पर सवाल उठाए जाने का प्रश्न है. हालांकि आर्टिकल के लागू किए जाने के वक्त जवाहर लाल नेहरू ने इसे संक्रमणकालीन व्यवस्था बताया था. जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि वक्त के साथ धीरे-धीरे इस आर्टिकल को हटाकर जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की तरह सामान्य राज्यों की श्रेणी में लाया जाएगा. लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी यह उसी रूप में लागू है.
आर्टिकल 370 भारतीय लोकतंत्र पर एक धब्बा है
आर्टिकल 370 भारतीय लोकतंत्र पर एक धब्बे से कम नहीं कहा जा सकता. एक गणतंत्र अपने शासन के अंतर्गत आने वाले राज्य को निर्देश नहीं दे सकता, इसके बनाए नियम उस पर लागू नहीं किए जा सकते, यह एक प्रकार से उस लोकतंत्र का अपमान ही कहा जाएगा. गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर का अपना ही संविधान है और कोई भी कानून यहां की एसेंबली में बहस के बाद ही पारित हो सकता है. विदेशी और वित्तीय मामलों के अलावे भारतीय संविधान इस पर अपना कोई कानून लागू नहीं कर सकता. यहां तक कि यहां के मौलिक अधिकार और कर्तव्य भी भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार और कानूनों से अलग हैं. यहां के कानून के अनुसार जम्मू-कश्मीर से बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकता जबकि भारत के अन्य राज्यों में ऐसा नहीं है. किसी भी राज्य का निवासी अन्य राज्यों में बिना किसी परेशानी अपनी पूंजी किसी भी रूप में निवेश कर सकता है. इसके साथ महिला अधिकार और कानून भी भारतीय कानून से जुदा हैं. यहां की महिलाएं अगर जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी करती हैं तो स्वत: ही वे राज्य की नागरिकता खो देने के साथ यहां के सारे अधिकार भी खो देती हैं. इस स्थिति में किसी भी रूप में किसी प्रकार की पैतृक या अन्य संपत्ति पर उनका अधिकार नगण्य हो जाता है. जबकि भारत के किसी भी राज्य में ऐसा कोई कानून नहीं.
क्यों बनाया गया आर्टिकल 370?
आजादी के बाद जब भारत का नक्शा बनाया जा रहा था तो लगभग-सभी राज्य भारत में मिलने को तैयार थे लेकिन जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ इसमें मिलने को तैयार नहीं थे. सरदार पटेल ने अपनी कूटनीतियों से जूनागढ़ और हैदराबाद को तो भारत में मिला लिया लेकिन कश्मीर न तो भारत, न पाकिस्तान में मिलना चाहता था. यहां मुस्लिम और कश्मीरी पंडितों की बहुलता थी और यह स्वतंत्र राज्य रहना चाहता था. बाद में कश्मीर के महाराजा हरि सिंह इस शर्त पर भारत से मिलने को तैयार हुए कि यह स्वतंत्र राज्य होगा और इसका अपना संविधान होगा. उस वक्त की परिस्थितियां ऐसी थीं कि इस शर्त को स्वीकार कर लिया गया और भारत का नक्शा पूरा कर लिया गया. ऐसा माना गया कि बदलते वक्त के साथ अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर भी भारत गणराज्य में अवशोषित हो जाएगा लेकिन पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद और दोहरी राजनीतिक नीतियों के कारण आज भी स्थिति वहीं की वहीं है.
आर्टिकल 370 की उपयोगिता
आर्टिकल 370 की उपयोगिता अगर देखी जाए तो यह किसी भी प्रकार भारत या एक विशेष राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर के लिए उपयोगी नहीं कहा जा सकता. भारत के एक विवादित हिस्से के रूप में देखा जाने वाला यह राज्य इस एक आर्टिकल के कारण देश की आम गति से दूर हो जाता है. अगर कोई राज्य देश के नियम कानूनों के अंतर्गत आता ही नहीं तो वह राज्य खुद को उस देश का हिस्सा माने ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. जाहिर है अगर जम्मू-कश्मीर के निवासी किसी भी रूप में भारतीय कानून से प्रभावित होते ही नहीं तो वे भारत गणराज्य का अंग खुद को कैसे मान लें. इस तरह कैसे हम पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर पर अपना अधिकार होने की बात कर सकते हैं. जाहिर है अगर आप उस राज्य को अपने देश के कानून के अधीनस्थ नहीं कर सकते तो उस पर तो कोई भी अपना अधिकार जता सकता है. इस तरह यह आर्टिकल जम्मू-कश्मीर को भारत गणराज्य से विभेद कराता है.
विशेष परिस्थितियों में लिया गया यह राजनीतिक फैसला उस वक्त की जरूरत हो सकता था लेकिन भविष्य में इस पर ध्यान नहीं दिया गया. राजनीति में विवाद अपवाद नहीं हैं लेकिन विवादों को राजनीतिक फायदे के लिए हमेशा उपयोग किया गया है. जम्मू-कश्मीर के साथ भी यही हुआ. कांग्रेस-शासित कई सरकारें आईं-गईं लेकिन कश्मीर से जुड़े इतने संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दे पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. आज भले ही यह मसला एक बार फिर राजनीतिक कारणों से, लाभ लेने की दृष्टि से ही उठाया गया हो लेकिन आज इस पर बहस होना जरूरी बन गया है.
Article 370
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