किसी भी घटना में मोड़ आना स्वाभाविक है. अब बात यहां आकर फसंती है कि उस मोड़ से वह घटना कितनी प्रभावित होती हि और आगे क्या रुख पकड़ती है. जहां तक राजनीति की बात है तो यह बात आम है और ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि राजनीति का निर्माण कुछ ऐसे अवयकवों से मिल कर हुआ है जो कभी भी एक दशा में रह ही नहीं सकते। जैसे कि पदार्थों की अवस्था में देखा गया है कि वो कभी तरल तो कभी वाष्प के रूप में रहते हैं, ठीक ऐसी ही हालत राजनीति की है जो कभी भी एक समान अवस्था में नहीं रह सकती.
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“आप” को क्या हुआ?: भारत की राजनीति में अपनी किसमत को आजमाने आए जोशिले अरविन्द केजरीवाल फिर से द्वन्द में घिरते नज़र आते हैं. आम आदमी पार्टी (आप) का निर्माण करते समय जिस प्रकार अपनी बातों को सब के सामने रखा था वो तो अभी तक वैसी ही हैं पर आप के अन्दाज में कुछ अंतर जरूर आया है.जहां अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे व्यक्ति इस पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं, वहीं जिस व्यक्ति ने भारत के लोगों को यह बताया कि आखिर भ्रष्टाचार किसे कहते हैं, इसके विरोध में क्या करना चाहिए और इस संकट से देश को कैसे उबारा जाए?इसके लिए अनशन पथ घेराव आदि सारे प्रकार के अहिंसात्मक तथ्यों का प्रयोग किया गया पर भारत के सत्ता पक्ष के पास इतनी शक्ति होती है कि वो किसी भी आन्दोलन को कुचलने में कारगर साबित होता है. अन्ना भी इस सत्ता को नहीं सुधार पाए पर इसके बाद भी वो प्रयासरत रहे और अपनी सारी उर्जा भारत में लोकपाल बिल को लाने में लगा रहे हैं.
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मतभेद या मनभेद: अन्ना और अरविन्द केजरीवाल को बहुत नजदीक माना जाता था और यह भी अनुमान लगाया जाता था कि दोनों की विचारधारा एक ही दिशा की ओर परस्पर चल रही है. जहां दोनों ने ना जाने कितने आरोपों का मिल कर सामना किया और अपने आप को बेदाग साबित भी किया वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा फैसला सामने आया जहां दोनों के विचारों में अलगाव देखने को मिला, जिसके बारे में कभी भी कल्पना नहीं की गई थी. अरविन्द केजरीवाल का राजनीति में आने का मकसद भले ही कुछ और रहा हो, पर यही वो शिष्य है जिसने राजनीति में आने की बात को खारिज कर दिया था. अन्ना और अरविन्द केजरीवाल के बीच आई दूरियों का मुख्य कारण भी यही फैसला लगता है. अन्ना की माने तो वो बाहर रह कर राजनीति को बदलना चाहते हैं और और अरविन्द की परिवर्तित विचार की माने तो बिना राजनीति के दलदल में उतरे इसे साफ नहीं किया जा सकता है. दोनों के बीच द्वन्द का सबसे प्रमुख कारण यही है जो एक एक दूसरे को अलग करता जा रहा है.
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इसकी आशा नहीं थी: अन्ना टीम से यह आशा कोई भी नहीं कर सकता था कि अन्य राजनैतिक पार्टियों की तरह इसमें भी बाताकही का दौर शुरू ओ जाएगा. कुमार विश्वास द्वारा कहा गया है कि अन्ना का आन्दोलन राजनैतिक था इस बात को अच्छे से साबित करता है कि एक विरोधाभास की स्थिति जन्म ले रही है दोनों गुटों के बीच. अब देखना यह होगा कि इन बातों पर कैसे टीम अन्ना और केजरीवाल नकेल कसेंगे और विरोधियों को कोई मौका नहीं देंगे अपनी हानी के लिए.
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