4 अप्रैल, 2012 का वह दिन जब अन्ना हजारे के साथ-साथ चलने वाला एक चेहरा नजर आता है जो बड़े जोश के साथ कह रहा होता है कि हम आम नागरिक हैं और हमें लोकपाल बिल लाने से कोई भी नहीं रोक सकता है.. यह लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है…..आज वो ही चेहरा लड़ाई तो लड़ रहा है पर यह समझ से परे है कि लोकपाल बिल के लिए यह लड़ाई लड़ी जा रही है या फिर स्वयं को राजनीति में स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है.
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अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal)ने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोकपाल बिल लाने की लड़ाई एक साथ शुरू की थी फिर अचानक ही दोनों के रास्ते अलग होते हुए नजर आए. यह बात अलग है कि दोनों ही इस बात को नहीं मानते हैं कि दोनों के बीच दूरी आ चुकी है पर सच से कौन वाकिफ नहीं है. अरविंद केजरीवाल राजनीतिक पार्टी बनाकर भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ना चाहते हैं पर आजकल वो भ्रष्टाचार के लिए नहीं अपनी राजनीतिक पार्टी के लिए लड़ते नजर आ रहे हैं. यह सच है कि आज राजनीति में अधिकांश नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं इसलिए कोई भी किसी के बारे में कुछ बोलना नहीं चाहता है. प्रधानमंत्री से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है. ऐसे में सवाल यह है कि आम जनता किसके पास जाकर अपने सवालों के जबाव मांगे. एक तरफ केन्द्र सरकार कहती है कि भारत विकास कर रहा है पर आम जनता कहती है कि भारत कौन से विकास के रास्ते जा रहा है जहां आम नागरिक पेट भर भोजन भी नहीं प्राप्त कर पा रहा है. ऐसे में यदि कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार का मुद्धा उठाता है तो जाहिर तौर पर वो आम जनता से जुड़ जाता है भले ही वो व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की प्राप्ति के लिए ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ रहा हो.
कहा जाता है कि अधिकांश नागरिक राजनीति को गटर कहते हैं पर वास्तव में कोई भी इस गटर में उतरकर भ्रष्टाचार जैसी गंदगी को साफ करने वाला नहीं है. तो ऐसे में यदि कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत मंशा लेकर गटर में उतरकर उसे साफ करने के लिए तैयार है तो इसमें गलत क्या है? आज वो समय आ चुका है जब अधिकांश जनता का राजनीति करने वालों से विश्वास उठ चुका है. अब जनता ऐसे किसी नए चेहरे पर विश्वास करना चाहती है जो आम नागरिक से जुड़ा हो शायद इसीलिए अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal) ने अपनी राजनीतिक पार्टी की लड़ाई में अपनी टोपी ‘मैं अन्ना हूं’ से बदलकर ‘मैं आम नागरिक हूं’ कर ली है जिस कारण आज अरविंद केजरीवाल किसी ना किसी रूप में आम जनता से जुड़े हुए नजर आ रहे हैं. अब मुद्दा यह है कि क्या अरविंद केजरीवाल की लड़ाई गलत है या उनका रास्ता गलत है? अरविंद केजरीवाल की भले ही भ्रष्टाचार जैसे मुद्धे पर लड़ाई लड़ने के पीछे राजनीति मंशा हो सकती है पर सच तो यह है कि आज नहीं तो कल किसा ना किसी को भ्रष्टाचार से लड़ने की शुरुआत तो करनी ही थी.
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