भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान पुरुषों में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का नाम हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता रहा है. स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है इस नारे को देने वाले बाल गंगाधर तिलक को लोग उनकी सेवाओं और कार्यों के लिए लोकमान्य कहते हैं.
बाल गंगाधर तिलक की सरकार विरोधी गतिविधियों ने एक समय उन्हें ब्रिटिश सरकार के साथ टकराव की स्थिति में ला खड़ा किया था. लेकिन उनकी सार्वजनिक सेवाएं उन्हें मुकदमे और उत्पीड़न से नहीं बचा सकीं. सन 1897 में उन पर पहली बार राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया. सरकार ने उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया इस मुकदमे में और सजा के कारण उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली.
Bal Gangadhar Tilak on Swaraj: बाल गंगाधर तिलक की प्रोफाइल
“स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है” के उद्घोषक लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का भारत राष्ट्र के निर्माताओं में अपना एक विशिष्ट स्थान है. उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 ई. को हुआ था. उनका सार्वजनिक जीवन 1880 में एक शिक्षक और शिक्षण संस्था के संस्थापक के रुप में आरम्भ हुआ. इसके बाद ‘केसरी‘ और ‘मराठा‘ उनकी आवाज के पर्याय बन गए. इनके माध्यम से उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध तो किया ही साथ ही भारतीयों को स्वाधीनता का पाठ भी पढ़ाया.
बाल गंगाधर तिलक और कांग्रेस
वह एक निर्भीक सम्पादक थे, जिसके कारण उन्हें कई बार सरकारी कोप का भी सामना करना पड़ा. उनकी राजनीतिक कर्मभूमि कांग्रेस थी, किन्तु उन्होंने अनेक बार कांग्रेस की नीतियों का विरोध भी किया. अपनी इस स्पष्टवादिता के कारण उन्हें कांग्रेस के नरम दलीय नेताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ा. इसी विरोध के परिणामस्वरुप उनका समर्थक गरम दल कुछ वर्षों के लिये कांग्रेस से पृथक भी हो गया था, किन्तु उन्होंने अपने सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया.
स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैऔर हम इसे लेकर रहेंगे‘ का नारा देकर देश में स्वराज की अलख जगाने वाले बाल गंगाधर तिलक उदारवादी हिन्दुत्व के पैरोकार होने के बावजूद कट्टरपंथी माने जाने वाले लोगों के भी आदर्श थे. धार्मिक परम्पराओं को एक स्थान विशेष से उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की अनोखी कोशिश करने वाले तिलक सही मायने में ‘लोकमान्य‘ थे.
Lal Bal Pal trio: लाल-बाल-पाल
गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे. इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा. 1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) में जेल भेज दिया गया. जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916-18 में एनी बीसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की.
लेकिन नए सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही 1 अगस्त, सन 1920 ई. में बंबई में तिलक की मृत्यु हो गई. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और नेहरू जी ने भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि दी.
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