एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बने बराक ओबामा पर बड़ी जिम्मेदारियां आई हैं. अमेरिका पिछले कुछ समय से बहुत सारी विपत्तियों से घिरा हुआ है. ऐसे में कुछ और ऐसे तथ्य हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है. यह जिम्मेदारियां एक चुनौती का रूप ले चुकी हैं जिसके लिए कुछ विशेष कदम उठाने की जरूरत है और इसका पूरा भार राष्ट्रपति बराक ओबामा को ही उठाना होगा.
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चुनौतियां यह हैं: अमेरिका पिछले कुछ समय से एक भारी मंदी से गुजर रहा है, जिसे महामंदी कहना ज्यादा सही होगा. आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह देखा जा सकता है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था इन दिनों ऐसी परिस्थितियों में है जो आने वाले दिनों में एक चिंता का विषय बनेगा. इतने बड़े और शक्तिशाली देश की हालत ऐसी है जहां बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है, वर्तमान में अमेरिका में बेरोजगारी की दर 7.9 प्रतिशत है और कई लाख अमरीकी या तो पूरी तरह बेरोजगार हैं या अपनी शिक्षा के आधार पर उनको नौकरी नहीं मिल पा रही है. वो अपने योग्यता से नीचे काम करने के लिए मजबूर हैं. लगातार गिरता रियल एस्टेट बाजार भी एक चिंता का कारण है जो विकास दर को सामान्य रूप से चला पाने में असक्षम हैं, फिलहाल अमेरिका की विकास दर 2 प्रतिशत है जिससे यह आशा नहीं की जा सकती कि वो आने वाले दिनों में अमेरिका को एक अच्छी स्थिति प्रदान कर पाएगा. अमेरिका में पिछ्ले साल कर बढ़ाने की नीति और सरकारी कार्यों के खर्च में कटौती करने से भी कोई ज्यादा फर्क नहीं आया. अर्थव्यवस्था के और कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि यह कदम अर्थव्यवस्था को सुचारु रुप से चला पाने में असफल है.
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कितनी राहत देंगी यह नीतियां: ईरान और अमेरिका के बीच जो द्वंद की सृष्टि हो रही है उसका प्रभाव शायद व्यापक रूप में सामने आएगा. अमेरिका को यह एतराज़ है कि ईरान के पास परमाणु हथियार है जिसको वो गलत प्रयोग करेगा जबकि ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण कार्यों यानि सिर्फ बिजली पैदा करने के लिए है. कई सारी बातों को लेकर भारत भी इस चुनाव पर निर्भर करता है कि आने वाले दिनों में उसे किस तरह से अमेरिका से मदद मिल पाएगी. जहां आउटसोर्सिंग को लेकर ओबामा ने अपनी राय जाहिर कर दी है वहीं भारत भी इस मामले पर अमेरिका के अंतिम फैसले की उम्मीद लगाए बैठा है.
व्यापक है अंतरराष्ट्रीय राजनीति का वंशवादी चरित्र
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