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भीमराव अंबेडकर के पास थीं 32 डिग्रियां, 9 भाषाओं के थे जानकार, अंत में अपना लिया था बौद्ध धर्म

संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने देश को सामाजिक समानता का रास्‍ता दिखाया। उन्‍होंने विज्ञान और तकनीक के जरिये देश के विकास का सपना देखा था। हम सम्‍मान से उन्‍हें बाबा साहब कहते हैं। उनकी जिंदगी से जुड़े अनेक किस्‍से हैं। उन्‍हीं में से एक किस्‍सा है उनके नाम में ‘अंबेडकर’ जुड़ने का। बहुत कम लोगों को पता होगा कि डॉ. भीमराव का सरनेम पहले ‘सकपाल’ था। बाद में उनका सरनेम आंबेडकर हुआ, जिसके बाद उनका पूरा नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर लिखा जाने लगा। आइये आपको बताते हैं डॉ. भीमराव के अंबेडकर से जुड़ी खास बातें।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal14 Apr, 2019

 

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पहले सरनेम था ‘सकपाल

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था। 6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। बाबा साहब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। इस वजह से शुरू में उनका सरनेम सकपाल था। अब सवाल उठता है कि फिर उनका सरनेम अंबेडकर कैसे हुआ।

 

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महार जाति में हुआ था जन्‍म

बाबा साहब का जन्म महार जाति में हुआ था, जिसे उस समय लोग अछूत और निचली जाति मानते थे। अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव भी सहन करना पड़ा। प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको छुआ-छूत के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। इसे देखते हुए उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल’ की बजाय ‘आंबडवेकर’ लिखवाया। इसके पीछे की वजह यह थी कि वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे। उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन था। इस तरह भीमराव सकपाल का नाम आंबडवेकर उपनाम से स्कूल में दर्ज किया गया।

 

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शिक्षक ने दिया ‘ अंबेडकर’ सरनेम

अब बाबा साहब का उपनाम अंबेडकर था। बाबासाहब से कृष्णा महादेव आंबेडकर नामक एक ब्राह्मण शिक्षक को विशेष स्नेह था। इस स्नेह के चलते ही उन्होंने बाबा साहब के नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर उसमें अपना उपनाम ‘ अंबेडकर’ जोड़ दिया। इस तरह उनका नाम भीमराव अंबेडकर हो गया, जिसके बाद उन्‍हें अंबेडकर बोला जाना लगा। बताया जाता है कि 1898 में पुनर्विवाह के बाद वे परिवार के साथ बंबई यानी मुंबई चले गए। वहां एल्फिंस्टन रोड स्थित गवर्नमेंट हाईस्कूल के पहले ऐसे छात्र थे, जिसे उस समय अछूत माना जाता था।

 

32 डिग्रियां और 9 भाषाओं के जानकार
बीआर अंबेडकर को आजादी के बाद संविधान निर्माण के लिए 29 अगस्त, 1947 को संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। फिर उनकी अध्यक्षता में दो वर्ष, 11 माह, 18 दिन के बाद संविधान बनकर तैयार हुआ। कहा जाता है कि 9 भाषाओं के जानकार थे। इन्हें देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों से पीएचडी की कई मानद उपाधियां मिली थीं। इनके पास कुल 32 डिग्रियां थीं। साल 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।

 

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नई तकनीक के इस्तेमाल के थे पक्षधर

बताया जाता है कि बाबासाहब नई तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। डॉ. अंबेडकर देश के तकनीकी विकास के लिए संकल्पित थे। उन्होंने पहले संसदीय चुनाव (1951-52) के पहले घोषणापत्र में कहा था कि खेती में मशीनों का प्रयोग होना चाहिए। भारत में अगर खेती के तरीके आदिम बने रहेंगे, तो कृषि कभी भी समृद्ध नहीं हो पाएगी। मशीनों का प्रयोग संभव बनाने के लिए छोटी जोत की बजाय बड़े खेतों पर खेती की जानी चाहिए

 

अंत में अपना लिया बौद्धधर्म
आर्थिक मुश्किलों के साथ ही उन्हें हिंदू धर्म की कुरीतियों को सामना भी करना पड़ा और उन्होंने इन कुरीतियों को दूर करने के लिए हमेशा प्रयास किए। उसके बाद अक्टूबर, 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया जिसके कारण उनके साथ लाखों दलितों ने भी बौद्ध धर्म को अपना लिया। उनका मानना था कि मानव प्रजाति का लक्ष्य अपनी सोच में सुधार लाना है।…Next

 

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