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अटल बिहारी वाजपेयी की 5 मशहूर कविताएं और भाषण, यहां सुनिए

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के अटल और मजबूत सितारे रहे। अटल बिहारी राजनेता होने के साथ शानदार वक्‍ता और कवि थे। अटल जी के समकालीन नेता बताते हैं जब अटल जी भाषण देने पहुंचते थे लोग सुनने के लिए पूरी तरह शांत हो जाते थे। अटल जी ने कई भाषणों को अपनी कविताओं के जरिए शुरू किया। आज ही के दिन 25 दिसंबर 1924 को अटल बिहारी ग्‍वालियर में जन्‍मे थे। आईए जानते हैं अटल बिहारी की 5 प्रमुख कविताओं को भाषणों के बारे में।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan25 Dec, 2019

 

 

 

 

 

 

अटल बिहारी वाजेपयी 5 मशहूर कविताएं

1. ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?

 

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

 

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

 

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

 

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

 

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

 

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

 

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई!

 

 

 

2. उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.

 

 

3. हरी हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियां
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|

क्‍कांयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूं
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बूंदों को ढूंढूं?

 

 

 

4. सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं?
कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं?

सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी।

 

 

5. खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.

खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.

अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.

 

 

 

अटल बिहारी वाजपेयी की 10 मशहूर कोट

1. ”अगर भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है, तो भारत बिल्कुल भारत नहीं है.”
2. ”मैं हमेशा से ही वादे लेकर नहीं आया, इरादे लेकर आया हूं.”
3. ”छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता.”
4. ”जीत और हार जीवन का एक हिस्सा है, जिसे समानता के साथ देखा जाना चाहिए.”
5. ”होने, ना होने का क्रम, इसी तरह चलता रहेगा. हम हैं, हम रहेंगे, ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा.”
6. ”लोकतंत्र एक ऐसी जगह है जहां दो मूर्ख मिलकर एक ताकतवर इंसान को हरा देते हैं.”
7. ”क्यों मैं क्षण-क्षण में जियुं? कण-कण में बिखरे सौंदर्य को पियूं?”
​8. ”गरीबी बहुआयामी है यह हमारी कमाई के अलावा, स्वास्थ्य राजनीतिक भागीदारी, और हमारी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति पर भी असर डालती है.”
9. ”आप मित्र बदल सकते हैं पर पड़ोसी नहीं.”
10.”मेरे पास ना दादा की दौलत है और ना बाप की. मेरे पास मेरी मां का आशीर्वाद है.”…NEXT

 

 

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इस भाषण से प्रभावित होकर मायावती से मिलने उनके घर पहुंच गए थे कांशीराम, तब स्कूल में टीचर थीं बसपा सुप्रीमो

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