देश की दो बड़ी राजनैतिक पार्टियां, जो खुद को एक-दूसरे से बेहतर दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़तीं, कभी भी खुद को आरोपों के साये से बचाकर नहीं रख पाई हैं. तभी तो कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों को ही अपनी सफाई देने के लिए आगे आना ही पड़ता है ताकि उनका जो वोटबैंक है वो उनके हाथ से कोई छीन ना ले.
खैर राजनीतिक दल हो और उस पर कोई आरोप ना लगें ऐसा तो हो नहीं सकता इसीलिए अब अगर कांग्रेस और भाजपा पर आरोप लगते हैं तो इसमें कुछ नया नहीं है. लेकिन यहां मुद्दा दूसरा है, यहां मुद्दा है भाजपा का जो खुद को तो देश की सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्ष पार्टी मानती हैं, जब उसके साथी ही उसका साथ इस आधार पर साथ दें कि वो हिन्दुत्व के सिद्धांत पर चलती है तो कहीं ना कहीं उसके धर्म निरपेक्ष होने पर भी सवाल उठने लगते हैं.
एनडीए गठबंधन की प्रमुख पार्टी शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे का यह साफ कहना है कि शिवसेना, भाजपा के साथ सिर्फ तब तक काम करेगी जब तक वह हिन्दुत्व के सिद्धांत पर कायम रहेगी. हालांकि शिवसेना प्रमुख और बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे का कहना है कि इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अन्य धर्मों का विरोध करते हैं लेकिन अगर हिन्दुओं के हितों को नजरअंदाज किया गया तो वह इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.
उद्धव ठाकरे के इस कथन ने कहीं ना कहीं भाजपा की कथित लोकतांत्रिक छवि पर सवालिया निशान लगा दिया है कि जिस तरह से भाजपा खुद को प्रचारित करने में जुटी है, उसकी छवि इससे ठीक उलट है.
कहीं यही वजह तो नहीं है जो भाजपा मोदी का दामन छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो पा रही है, क्योंकि मोदी की छवि एक सांप्रदायिक नेता की है और उनकी इसी छवि के कारण भाजपा के साथी उसका साथ छोड़-छोड़कर जा रहे हैं. नरेंद्र मोदी को एक ऐसे नेता के तौर पर पहचाना जाता है जो चरमपंथी हिंदुत्व के समर्थक हैं और नरेंद्र मोदी की इस छवि से अच्छी तरह परिचित होने के बावजूद भाजपा उनके कद को निरंतर बढ़ाने के मूड में है.
नीतीश कुमार ने भी भाजपा पर यही आरोप लगाए कि अब भाजपा का सिद्धांत, उसका उद्देश्य बदल गया है इसीलिए वह एनडीए गठबंधन के साथ नहीं रह सकते. वहीं इससे पहले भाजपा के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी भाजपा की कार्यप्रणाली को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं.
शिवसेना का भाजपा का साथ देने की इस शर्त और भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को दी जाने वाली महत्ता भले ही दो अलग-अलग मसले तो हैं लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो इन दोनों मसलों में एक ऐसा संबंध है जो भारतीय राजनीति को बहुत हद तक प्रभावित करने में सक्षम है. और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राजनीति ही किसी देश के सामाजिक और आर्थिक हालातों पर नियंत्रण रखती है तो जाहिर है इससे हमारे देश के सामाजिक हालात भी प्रभावित हो सकते हैं.
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