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छद्म लोकतंत्र की पर्याय भाजपा !!

कांग्रेस भ्रष्टाचारी है, स्वार्थ से लिप्त है, वह जनता का नहीं बल्कि सिर्फ अपना हित साधने में व्यस्त है…..जब भी कांग्रेस का नाम आता है तो यही कुछ भाव हमारे मस्तिष्क में कौंधने लगते हैं. हम कांग्रेस को उसकी कारगुजारियों के लिए कोसने लगते हैं और मन ही मन यह निश्चय कर लेते हैं कि अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को जीतने नहीं देंगे और उसकी विरोधी पार्टी भाजपा को ही सत्ता में लाएंगे.



लेकिन वर्तमान घटनाक्रमों को देखते हुए यही लगता है कि भले ही कांग्रेस भ्रष्टाचारी है लेकिन वह भाजपा की तरह अपने सदस्यों के प्रति ना तो दगाबाज है और ना ही कभी उनके पीठ पीछे वार करती है. जिस तरह भाजपा ने अपने शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की साख को पैरों तले रौंदा है शायद इतनी हिमाकत कभी कांग्रेस नहीं कर सकती थी. भाजपा जहां अपने वरिष्ठ सदस्यों को निकालने में व्यस्त है वहीं इसके विपरीत कांग्रेस ने अपने बागी सदस्यों को भी दोबारा पूरे मन के साथ स्वीकार किया है.



आडवाणी की इस रुसवाई का कारण कहीं मोदी तो नहीं?


पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी जब अक्षम साबित हो रहे थे, पार्टी की कमान संभालने में खुद को असहाय साबित होने लगे थे तब कांग्रेस की साख बचाने के लिए सीताराम केसरी को पद विमुक्त कर दिया गया था. सीताराम केसरी के रूप में कांग्रेस ने एक ऐसे सदस्य को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया था जो असफल साबित हो रहा था लेकिन भाजपा ने अपने उस सदस्य की गरिमा, उसकी निष्ठा पर प्रहार किया है जो सही दिशा में उनका मार्गदर्शन कर सकता था.



लेकिन दुखद सत्य यही है कि लालकृष्ण आडवाणी को अपनी इसी छवि का आज नुकसान उठाना पड़ रहा है. शायद उन्होंने कभी ये सोचा नहीं था कि वह जिस लगन और ईमानदारी के साथ संघ का काम आगे बढ़ा रहे हैं, उनकी यही ईमानदारी एक दिन उन्हें ऐसा दिन भी दिखाएगी जब उन्हें अपने ही शिष्य के सामने बेबस खड़ा होना पड़ेगा. उनकी छवि संघ की छवि से इतनी ज्यादा विशाल हो गई थी कि आडवाणी के राजनैतिक भविष्य को समाप्त करने के अलावा संघ के पास कोई और रास्ता ही शेष नहीं रह गया था. संघ की ओर से हर वो कोशिश की गई जिसके चलते आडवाणी खुद अपना मार्ग छोड़ दें लेकिन एक सच्चे सिपाही की तरह आडवाणी डटे रहे और इस दृढ़ता का नुकसान उन्हें अब भुगतना पड़ा है जब इस्तीफे के नामंजूर होने के बाद लोग उनकी वापसी को लौट के बुद्धू घर को आए, जैसे मुहावरे के साथ तुलना कर रहे हैं. जबकि यह  उनकी संघ के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता ही है जो इतना कुछ झेल लेने के बाद, अपनी गरिमा पर आघात होने के बाद वह फिर संघ के साथ जुड़कर उसी की शर्तों के साथ काम करने के लिए तैयार हो गए.


अपनी कब्र स्वयं तैयार कर रही है भाजपा !!


अब सवाल यह है कि जो पार्टी अपने वरिष्ठ, विश्वासपात्र और समर्पित सदस्यों के साथ ऐसा व्यवहार कर सकती है वह देश के प्रति किस समर्पण के साथ काम करेगी? भले ही कांग्रेस में एक परिवार का राज है जिसके खिलाफ कोई भी मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है लेकिन क्या वह एकेश्वरवाद इस छद्म लोकतंत्र से बेहतर नहीं है जिसकी भाजपा की ओर से हमेशा दुहाई दी जाती रही है.



कमरे के लिए एक पंखा नहीं खरीद सके नेहरू

पिता का शौक था हर खूबसूरत औरत को अपनी दुल्हन बनाना

जब जवाहरलाल नेहरू को उधार के पैसों पर अपना खर्च उठाना पड़ा


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