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क्या भाजपा इस सदमे के लिए तैयार है?

bjp next prime minister candidate modiआखिरकार लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में मोदी के नाम पर मुहर लग ही गई. हालांकि औपचारिक रूप से भाजपा ने मोदी के नाम की घोषणा अब तक नहीं की है लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ बीजेपी आलाकमान की बैठक में भागवत की सख्त हिदायत के बाद यह तय हो चुका है कि नरेंद्र मोदी ही 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. इससे पहले यह माना जा रहा था कि मोदी पर पार्टी के अंदर एकमत नहीं जुट पाने के कारण चुनाव के बाद ही पार्टी मोदी के नाम की घोषणा करेगी. लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि देश को नई सोच के नेता की जरूरत है जिसमें मोदी पूरी तरह फिट बैठते हैं. इसलिए भाजपा को आधिकारिक रूप से पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी के नाम की घोषणा कर देनी चाहिए. संघ प्रमुख की डांट के बाद लालकृष्ण आडवाणी का रुख भी नरेंद्र मोदी के लिए नरम पड़ गया है और उम्मीद की जा रही है कि अगले 15 दिनों में भाजपा औपचारिक रूप से इसकी घोषणा भी कर देगी. लेकिन क्या पार्टी सचमुच इसके लिए तैयार है?


संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा के आदेश के बाद पिछले कुछ दिनों से डीजी वंजारा प्रकरण के बाद मोदी के नाम पर चल रहा विवाद समाप्त हो गया है. गौरतलब है कि कांग्रेस के भ्रष्टाचारी रवैये को आगामी लकसभा चुनाव में भुनाकर केंद्र में शासन का सपना देख रही बीजेपी को तब करारा झटका लगा जब कर्नाटक में हजार घोटालों की गठरी पीठ पर लादे हुए भी कांग्रेस बहुमत से जीत गई और भाजपा बुरी तरह हार गई. हालांकि चुनाव पूर्व पोल भी इसी चुनाव रिजल्ट के कयास लगा रहे थे लेकिन शायद बीजेपी को उम्मीद थी कि अपने ताजा-तरीन भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी कांग्रेस उससे मुकाबला नहीं कर पाएगी. पर कर्नाटक की जनता-जनार्दन ने कुछ और ही फैसला दिया. यह बीजेपी और संघ दोनों के लिए निश्चित तौर पर हवा के विपरीत रुख का संकेत थी. तब शायद बीजेपी के पास कोई और रास्ता नहीं था सिवा कि वह अब मोदी के नाम के साथ आगे बढ़े. लेकिन पार्टी के सभी नेता मोदी के नाम पर सहमत नहीं थे.


मोदी के नाम के साथ हिंदुत्ववाद का कलंक भी जुड़ा है. मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए मोदी की छवि हमेशा संदेहास्पद मानी गई और आज भी बहुतायत यही सोच है. हालांकि मोदी अपने टेक्नो-फ्रेंडली प्रचार के तरीकों के लिए काफी लोकप्रिय रहे हैं. अभी हाल ही में उन्होंने देश के प्रमुख संस्थान आईआईटी से कई इंजीनियर्स को अपनी पार्टी से जोड़ा. बिहार के नेताओं से उन्होंने खास प्रकार के कॉंफ्रेस से बात की. अपने इन्हीं गुणों के कारण और विकास की बातों को इसमें जोड़कर मोदी आज युवाओं के पसंदीदा नेताओं की श्रेणी में आते हैं. शायद राहुल गांधी की प्रसिद्धि इतनी न हो आज जितनी मोदी की मानी जाती है. फिर भी विवादों और मोदी का चोली-दामन का साथ रहा है. गुजरात दंगों से इतर भी कभी केंद्र सरकार की नीतियों पर जुबानी हमले के लिए, कभी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री को खुली चुनौती देने के लिए, कभी पार्टी के आम मत से अलग आसाराम की खिलाफत के लिए, तो कभी लाल किला पंडाल से भाषण के लिए, मोदी कहीं न कहीं विवादित रहे हैं. संघ शायद मोदी की इस छवि को दोयम दर्जे का मानते हुए, हिंदुत्ववादी मोदी की छवि को ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है. तभी पार्टी के आला नेताओं में भी मोदी के नाम पर सहमति न बन पाने के बाद भी संघ मोदी को सबसे अधिक वरीयता देकर अपना फैसला सुना देता है.


भले ही अगले कुछ दिनों में आधिकारिक तौर पर मोदी भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार घोषित कर दिए जाएं लेकिन यह भाजपा की बाध्यता ही कही जाएगी. एक सर्वसम्मति से मानना और एक आदेश का पालन करना, दोनों ही दो अलग चीजें हैं. भाजपा की बाध्यता है कि वह संघ का साथ नहीं छोड़ सकती जैसे कांग्रेस ‘गांधी’ परिवार का साथ नहीं छोड़ सकती. लेकिन कांग्रेस ने गांधी परिवार से अलग रहकर भी शासन का सुख देखा है.


बात नीतियों की आती है. कांग्रेस सत्ता से तब बाहर जान पड़ने लगी जब उसमें अंदरूनी कलह पड़ चुली थी. सोनिया गांधी ने इस स्थिति को संभालकर कांग्रेस को केंद्र पर काबिज कराया. एक दशक से सत्ता से बाहर भाजपा की आज जो स्थिति है वह कांग्रेस की तब की स्थिति से बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. पार्टी के पास कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर बात करने के अलावे और कुछ नजर नहीं आ रहा. संघ ने भाजपा को मोदी नाम की रट लगाने का आदेश तो दे दिया लेकिन भाजपा के कई नेता आज भी इससे सहमत नहीं हैं. ऐसे में इतने अंदरूनी कलह के साथ चुनाव में उतरकर केवल मोदी की नींव पर भाजपा की जीत की उम्मीद करना संशय भरा जान पड़ता है. 2014 का लोकसभा चुनाव अगर भाजपा के पाले में नहीं आता तो एक प्रकार से केंद्र की सत्ता भाजपा के हाथों से बहुत दूर हो जाएगी. इसी नाजुक स्थिति का भान कर शायद भाजपा के नेता मोदी का जोखिम उठाने से डर रहे हों.

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