पीएम पद की उम्मीदवारी के लिए नरेंद्र मोदी पर हर रोज एक नया विवाद सामने आ जाता है. हालांकि पीएम पद की उनकी उम्मीदवारी में कोई भी विवाद आड़े नहीं आने पाता. लेकिन यह सब मोदी के संघ का चहेता होने के कारण ही हो पाता है. संघ हर विवाद पर मोदी की ढाल बनकर खड़ा जाता है और कोई भी विवाद का छींटा उनके पीएम पद की उम्मीदवारी से हटने का कारण नहीं बन पाता. पिछले एक सप्ताह से यह चर्चा उफान पर है कि संघ ने अब तक मोदी को भाजपा का पीएम कैंडिडेट घोषित नहीं करने के लिए पार्टी को कड़ी फटकार लगाई है और 15 दिनों के अंदर इसकी घोषणा करने की सख्त हिदायत दी है. कयास लगाए जा रहे हैं कि आज भाजपा पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी के नाम की आधिकारिक घोषणा कर देगी. लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव सुधींद्र कुलकर्णी ने एक इस पर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है.
गौरतलब है लालकृष्ण आडवाणी समेत बीजेपी के अधिकांश वरिष्ठ नेता मोदी की अगुवाई में चुनाव लड़ने पर सहमत नहीं हैं. देश में इस पर जितनी भी बहसें हों लेकिन अपनी पार्टी के अंदर भी अपने नाम पर मोदी पूरा बहुमत नहीं जुटा सके हैं. लंबे समय से बीजेपी के अंदर भी यह एक बहस का मुद्दा बन गया है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जाएं या नहीं. विश्लेषण के लिए मोदी से जुड़े कई मुद्दे उठाए गए और भाजपा इस पर अब तक उधेड़बुन में ही थी. इस मामले में यह एक महत्वपूर्ण बात है कि मोदी की उम्मीदवारी भले ही भाजपा में बहस का मुद्दा बनी हो लेकिन संघ हमेशा मोदी के पक्ष में रहा है. शायद यही कारण है कि मामले को लंबा खिंचता देख और बात बनती नहीं देख संघ ने ही अब इस पर हस्तक्षेप किया है और ‘करें या न करें’ के धुंध से बाहर निकलते हुए पार्टी संघ की आज्ञा का पालन करते हुए मोदी की उम्मीदवारी घोषित करने जा रही है. लेकिन आखिरी वक्त पर सुधींद्र कुलकर्णी का यह बयान कि ‘जिसने पार्टी को तोड़ दिया वह देश क्या चलाएगा’, ने इस पर पार्टी के अंदरूनी मनमुटाव को फिर सामने ला दिया है.
सुधींद्र कुलकर्णी का यह बयान उपेक्षित कर दिया जाता अगर वह कोई नौसिखिया और अनुभवहीन नेता होते. यह गौर करने वाली बात है कि सुधींद्र कुलकर्णी भाजपा के पूर्व सचिव रह चुके हैं. इसलिए उनका यह विवादित बयान बहुत मह्त्वपूर्ण है. कुलकर्णी का यह बयान पार्टी के अंदर की उस छटपटाहट को दिखाती है जो मोदी के नाम पर संघ का प्रस्ताव मानने की एक मजबूरी की स्थिति में पैदा हुई है. इसके साथ यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वास्तव में पार्टी आज बंटी नजर आ रही है. यहां तक कि सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का भी मोदी के लिए किनारा किया जा रहा है. वस्तुत: यह स्थिति भाजपा के सदस्य के लिए कहीं न कहीं एक असुरक्षा का भाव भी पैदा करने के लिए जिम्मेदार हो सकती है. अगर नरेंद्र मोदी पार्टी की मुख्यधारा में आए बिना इतना महत्वपूर्ण हो सकते हैं तो मुख्य धारा में आने के बाद उनके रुतबे के सामने पार्टी की अक्षुणता कहीं धूमिल पड़ जाने का डर भी हो सकता है.
सबसे बड़ी बात तो यह है अपनी उम्मीदवारी के लिए मोदी ने कभी खुलकर बोला नहीं लेकिन बिना बोले ही उनकी भंगिमाएं हमेशा एक पीएम कैंडिडेट की सी ही रहीं. हर भाषण, हर वक्तव्य में शुरुआत से ही मोदी स्वघोषित पीएम उम्मीदवार की तरह नजर आए. अपने ऊपर उठे इतने सवालों के बावजूद, पार्टी के अंदर इतने कलह के बावजूद उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि उन्हें पीएम की उम्मीदवारी नहीं चाहिए बल्कि पार्टी की एकजुटता ज्यादा मायने रखती है. तिस पर भी उनके नाम की घोषणा में देरी पर अभी हाल में एक भाषण में उन्होंने नाराजगी जता दी कि उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का कोई शौक नहीं, गुजरात की जनता ने उन्हें पांच सालों के लिए अपनी सेवा का फरमान दिया है और वे उनकी सेवा करते रहेंगे. मोदी के इस वक्तव्य को उनकी नाराजगी के रूप में देखा जा रहा था और माना जा रहा था कि इसके बाद संघ की प्रतिक्रिया आ सकती है. संभावना सही निकली और अपने चहेते मोदी के दुख को समझते हुए संघ ने मोदी की उम्मीदवारी की जल्द से जल्द घोषणा किए जाने का फरमान सुना ही दिया. मीडिया में खबर है कि आज दोपहर या शाम तक इसकी आधिकारिक घोषणा की जा सकती है. इसके बाद ‘भाजपा की ओर से पीएम पद का उम्मीदवार कौन?’ की धुंध भले ही छंट जाए लेकिन सुधींद्र कुलकर्णी का यह बयान मोदी के लिए एक चुनौती से कम नहीं होगी.
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