मुफ्ति मोहम्मद सईद अपने इस विवादित बयान के कारण कि, जम्मू कश्मीर के चुनाव आतंकवादियों के सहयोग के बिना संभव न हो पाते, काफी आलोचना झेल रहे हैं. पर यह पहला अवसर नहीं है जब मुफ्ति मोहम्मद को इस तरह के विवादों का सामना करना पड़ा हो. जम्मू और कश्मीर के नए मुख्यमंत्री मुफ्ति मोहम्मद सईद का नाम सबसे पहले तब चर्चा में आया जब उनकी बेटी रुबिया सईद को आतंकियों ने अपहरण कर लिया था. तब वे केंद्र सरकार में गृहमंत्री थे. तब केंद्र में वीपी सिंह की गठबंधन की सरकार चल रही थी. माना जाता है कि इसी घटना ने घाटी में हिंसा और अलगाववाद को हवा दी थी.
1989 में रुबिया सईद के अपहरण से कश्मीर सहित सारा देश हिल गया था. देश ने आतंकवाद का इतना बर्बर चेहरा अबतक नहीं देखा था. रुबिया एक ड़ॉक्टर थीं पर उनकी एक और पहचान थी, वे केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ति मोहम्मद सईद की बेटी थी. एक दूसरे के धुर विरोधी वाम और दक्षिणपंथी दलों के सहयोग से चल रही वीपी सिंह की सरकार कितनी मजबूर थी यह बताने की जरूरत नहीं. अनिर्णय की स्थिति में ये फैसला किया गया कि आतंकवादियों की मांग को मान लिया जाए.
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23 साल की रुबिया सईद को तो सुरक्षित छुड़ा लिया गया पर बदले में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के 5 दुर्दांत आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा. पर उनकी रिहाई के साथ ही घाटी में अल्लाह के लिए कलाश्निकोव उठाने के नारे गूंज उठें. उसके बाद से घाटी में अपहरणों और हत्या का एक सिलसिला चल पड़ा जिससे पिछले दो दशक से अधिक समय से घाटी झुलस रही है. कई लोगों का यह मानना है कि अगर उस समय सरकार ने घुटने नहीं टेके होते तो शायद घाटी के हालात इतने न बिगड़े होते. अलगाववादी नेता हिलाल वार ने अपनी किताब ‘ग्रेट डिस्क्लोजरः सीक्रेट अनमास्क्ड’ में तो यहां तक लिखा है कि पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने गृहमंत्री रहते हुए अपनी बेटी रुबिया सईद का अपहरण की साजिश खुद रच आंतकवादियों को छुड़वाया था.
बीजेपी की मदद से एक बार फिर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने वाले मुफ्ती मोहम्मद सईद की पहचान एक मृदुभाषी और सौम्य राजनेता के रूप में देखा जाता है, लेकिन देश के गृहमंत्री के तौर पर उनकी छवि को बड़ा आघात लग चुका है. वैसे मुफ़्ती मोहम्मद सईद के राजनीतिक जीवन पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि उन्होंने काफी कठिन सफर तय किया है.
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1936 में जन्में मुफ्ति मोहम्मद सईद की राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1950 में नेशनल कॉनफ्रेंस से हुआ था पर जल्द ही इस पार्टी से उनका मोहभंग हो गया. उन्होंने फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया. घाटी में कांग्रेस को खड़ा करने में उनका अहम योगदान रहा. 1971 में राज्य में बनी कांग्रेस की प्रथम सरकार में वे मंत्री बने. बाद में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ जनता दल के साथ भी हो लिए. वे वीपी सिंह के जनमोर्चे में भी रहे पर उनके राजनीतिक कॅरियर का लंबा वक्त कांग्रेस में ही बीता है.Next…
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